संयुक्त राष्ट्र, नौ मार्च संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष नेताओं ने भारत की ‘नारी शक्ति’ की परिवर्तनकारी ताकत की सराहना करते हुए कहा कि भारतीय महिलाएं अपने देश की विकास गाथा की सूत्रधार हैं। इन नेताओं ने देशभर में टिकाऊ खेती से लेकर प्रौद्योगिकी तक के क्षेत्र में भारतीय महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास की सराहना की।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन द्वारा शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम की मेजबानी की गई, जिसमें आंध्र प्रदेश की अराकू घाटी में आदिवासी समुदायों द्वारा अराकू कॉफी की खेती करने से जुड़ी विकास यात्रा पर प्रकाश डाला गया।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 78वें सत्र में अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस ने कहा, ‘‘वित्त और डिजिटल प्रौद्योगिकी से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा, अंतरिक्ष और विमानन तक, भारतीय महिलाएं अपने देश की विकास गाथा की सूत्रधार हैं... महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास के प्रति भारत का समर्पण दुनिया भर के देशों के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लैंगिक समानता को बढ़ाने, महिला सशक्तिकरण तथा अधिक न्यायसंगत और समतापूर्ण दुनिया की खोज में किसी को छूटने नहीं देने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता से अब हमें प्रेरणा लेनी चाहिए।’’
‘टिकाऊ कृषि पद्धतियों में महिलाओं की भूमिका: अराकू कॉफी की असाधारण कहानी’ नामक कार्यक्रम ने अराकू कॉफी की ‘बीज से कप’ तक की विकास यात्रा की कहानी के माध्यम से टिकाऊ कृषि पद्धतियों में महिलाओं की प्रभावशाली भूमिका पर प्रकाश डाला।
संयुक्त राष्ट्र उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने कहा कि भारत में महिलाओं और टिकाऊ कृषि पद्धतियों के बीच संबंध उल्लेखनीय है।
फ्रांसिस ने इस साल जनवरी में अपनी भारत यात्रा को याद करते हुए कहा कि उन्होंने ‘नारी शक्ति’ की परिवर्तनकारी शक्ति को प्रत्यक्ष रूप से देखा था। उन्होंने कहा, ‘‘महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के उद्देश्य से की गई कई पहलों से मैं ऊर्जावान और प्रेरित हुआ, जिनमें महिला उद्यमियों की वित्त तक पहुंच सुनिश्चित करना और उनके लिए व्यवसाय, सामुदायिक सेवा और व्यक्तिगत जीवन में खुद को साबित करने के लिए एक सक्षम वातावरण तैयार करना शामिल है।’’
फ्रांसिस ने कहा कि यह आयोजन न केवल अराकू घाटी की आदिवासी महिलाओं का सम्मान करता है, बल्कि कॉफी की खेती के माध्यम से कृषि, आर्थिक और सामाजिक क्रांति को बढ़ावा देने में उनकी अग्रणी भूमिका को भी मान्यता देता है।
उन्होंने कहा, ‘‘परिवर्तन के कारक के रूप में महिलाओं की कहानियां - जैसे कि अराकू घाटी की महिलाओं की कहानियां - बार-बार बताई जानी चाहिए, इस संस्था के अंदर भी। मैं सफलता की अपनी प्रेरणादायक कहानियों में से एक को साझा करने के लिए भारत की सराहना करता हूं।’’
फ्रांसिस ने कहा कि महिलाओं के सशक्तिकरण में भारत के ऐतिहासिक योगदान की लंबी सूची अग्रणी सुधारक और शिक्षिका हंसा मेहता के उल्लेख के बिना अधूरी होगी।
मेहता ने 1947 से 1948 तक संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया और वह मानवाधिकारों के ऐतिहासिक सार्वभौमिक घोषणापत्र में लैंगिक रूप से अधिक संवेदनशील सुनिश्चित करने के लिए व्यापक रूप से जाने जाते हैं। उन्होंने ‘सभी पुरुष स्वतंत्र और समान रूप से जन्म लेते हैं’ वाक्यांश को बदलकर ‘‘सभी मनुष्य स्वतंत्र और समान रूप से जन्म लेते हैं’ कर दिया।
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