देश की खबरें | बदरीनाथ यात्रा में नासूर बने लामबगड स्लाइड जोन का ट्रीटमेंट पूरा
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देहरादून, सात जनवरी उत्तराखंड सरकार ने बृहस्पतिवार को कहा कि बदरीनाथ धाम की यात्रा में पिछले 26 वर्षों से नासूर बने ‘लामबगड़ स्लाइड जोन’ का स्थायी ट्रीटमेंट कर लिया गया है ।
यहां जारी एक सरकारी विज्ञप्ति ने दावा किया गया है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की इच्छाशक्ति और सख्ती की बदौलत यह परियोजना महज दो वर्ष में ही पूरी हो गयी है और अगले 10 दिन के भीतर इसे जनता को समर्पित कर दिया जाएगा। ।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि करीब 500 मीटर लंबे स्लाइड जोन (भूस्खलन क्षेत्र) का ट्रीटमेंट (उपचार) 107 करोड़ रू की लागत से किया गया है । इस परियोजना के पूरा हो जाने से बदरीनाथ धाम की यात्रा निर्बाध हो सकेगी और तीर्थयात्रियों को परेशानियों से निजात मिलेगी।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने इस बारे में कहा, ‘‘हमारी सरकार चारधाम यात्रा को सुगम बनाने के लिए तत्पर है। लामबगड़ स्लाईड जोन बदरीनाथ यात्रा में बड़ी बाधा थी । हमने इसके ट्रीटमेंट की ईमानदारी से पूरी कोशिश की। इसका परिणाम सभी के सामने है। लगातार प्रभावी निगरानी से वर्षों से अटकी परियोजनाओं को पूरा किया गया है।’’
इसमें कहा गया है कि सीमांत चमोली जिले में 26 साल पहले ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर पाण्डुकेश्वर के पास लामबगड़ में पहाड़ के दरकने से स्लाइड जोन बन गया। इसके बाद हल्की सी बारिश में ही पहाड़ से भारी मलबा सडक पर आ जाने से हर साल बदरीनाथ यात्रा अक्सर बाधित होने लगी और यह यात्रा के लिए नासूर बन गया।
इके मुताबिक पिछले ढाई दशकों में इस स्थान पर खासकर बरसात के दिनों मे कई वाहनों के मलबे में दबने के साथ ही कई लोगों की दर्दनाक मौत भी हो गई। करोड़ों खर्च होने पर भी इस समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा था।
गौरतलब है कि पूर्व मे लामबगड़ में बैराज के निर्माण के दौरान जेपी कंपनी ने इस स्थान पर सुरंग निर्माण का प्रस्ताव रखा था और उस समय इस सडक पर आधिपत्य रखने वाले सीमा सडक संगठन ने भी उसके लिए हामी भर दी थी, लेकिन दोनों की अनुमानित लागत में बड़ा अंतर होने के कारण मामला अधर में लटक गया ।
इसके बाद वर्ष 2013 की भीषण आपदा में लामबगड में यह राष्ट्रीय राजमार्ग ध्वस्त हो गया था, तब इस स्लाइड जोन के स्थाई ट्रीटमेंट की जिम्मेदारी एनएच पीडब्लूडी को दी गई जिसने यह कार्य विदेशी कम्पनी मैकाफेरी को दिया लेकिन वन मंजूरी समेत तमाम अड़चनों की वजह से ट्रीटमेंट का यह काम नहीं हो पाया ।
वर्ष 2017 में त्रिवेंद्र रावत सरकार के सत्ता में आते ही इन तमाम अड़चनों को मिशन मोड में दूर किया गया । दिसंबर 2018 में परियोजना का काम युद्धस्तर पर शुरू हुआ और महज दो वर्ष में इसे पूरा कर लिया गया ।
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