विदेश की खबरें | शाही ताबूत को अंतिम दर्शन के लिए रखने की परंपरा समय बदलने के बावजूद बरकरार

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on world at LatestLY हिन्दी. वर्ष 1936 की जीवन यापन की परिस्थितियों से आज के ब्रिटेनवासी अपरिचित हैं। लेकिन लगभग एक सदी के बदलाव के बावजूद महारानी के ताबूत को अंतिम दर्शन के लिए उसी प्रकार रखा गया है, जैसा जॉर्ज पंचम के अंतिम संस्कार से पहले उनके ताबूत को रखा गया था।

श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने

वर्ष 1936 की जीवन यापन की परिस्थितियों से आज के ब्रिटेनवासी अपरिचित हैं। लेकिन लगभग एक सदी के बदलाव के बावजूद महारानी के ताबूत को अंतिम दर्शन के लिए उसी प्रकार रखा गया है, जैसा जॉर्ज पंचम के अंतिम संस्कार से पहले उनके ताबूत को रखा गया था।

दोनों शासकों के निधन पर उनके पार्थिव शरीर को ताबूत में विशाल और मध्यकालीन वेस्टमिंस्टर हॉल के बीचोंबीच जामुनी रंग के शाही मंच पर रखा गया । ताबूत के एक छोर पर कांसे का क्रॉस जबकि ताबूत के ऊपर शाही ध्वज लिपटा होता है, मंच के चारों कोनों पर लंबी मोमबत्तियां जलती रहती हैं और शाही गार्ड चारों ओर खड़े रहते हैं।

इतिहासकारों का कहना है कि इस तरह की परंपराओं को बरकरार रखना राजशाही के प्रति सम्मान बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। ‘क्राउन एंड सेप्टर: 1000 इयर्स ऑफ किंग्स एंड क्वींस’ की लेखिका और इतिहासकार ट्रेसी बोरमैन ने कहा, ‘‘जब आप तस्वीरों को देखते हैं, तो आप उनमें फर्क नहीं बता पाते , है ना?’’

उन्होंने कहा कि लोग एक ताज और राजदंड देखना चाहते हैं, वे इन समारोहों को उसी तरह मनाया जाता देखना पसंद करते हैं, जिस तरह पहले होता था। उन्हें बिना किसी परिवर्तन के इन्हें इस प्रकार देखने से एक प्रकार का सुकून और सुरक्षा महसूस होती है।

ब्रिटेन में सबसे लंबे समय तक शासन करने वालीं महारानी, ​​जिन्होंने 70 वर्षों तक शासन किया, स्कॉटलैंड में आठ सितंबर को अपने निधन तक ब्रिटिश जीवन में स्थिरता का प्रतीक थीं।

महारानी से पहले, पांच ब्रिटिश महाराजाओं और महारानियों का शाही ताबूत वेस्टमिंस्टर हॉल में अंतिम दर्शन के लिए रखा जा चुका है। 900 साल पुरानी यह इमारत सदियों से ब्रिटिश राजनीति और सत्ता का केंद्र रही है।

शासक के निधन पर ताबूत परंपरा का संबंध स्टुअर्ट्स के समय से है, जिन्होंने वर्ष 1603 से 1714 तक शासन किया। स्टुअर्ट्स का ताबूत कई दिनों तक अंतिम दर्शनों के लिये रखा गया। लेकिन एडवर्ड सप्तम के समय ताबूत को वर्ष 1910 में वेस्टमिंस्टर हॉल में रखने की आधुनिक परंपरा स्थापित की गई।

अभिलेखीय तस्वीरों से पता चलता है कि आज की ही तरह, उस समय भी बड़ी संख्या में लोग अपने सम्राट को श्रद्धांजलि देने के लिए मध्य लंदन में लंबी लंबी कतारों में खड़े रहते थे।

इतिहासकार एड ओवेन्स का मानना ​​​​है कि यह एडवर्ड सप्तम द्वारा सम्राट और उसकी प्रजा के बीच बंधन को मजबूत करने के लिए उठाया गया सावधानीपूर्वक उठाया गया कदम था।

वेस्टमिंस्टर हॉल में जिन अन्य शासकों के ताबूत सार्वजनिक श्रद्धांजलि के लिए रखे गये उनमें महारानी एलिजाबेथ-द्वितीय के पिता किंग जॉर्ज-छष्टम (1952), एलिजाबेथ-द्वितीय की दादी क्वीन मैरी (1953) और महाराजा जॉर्ज छष्टम की पत्नी रानी एलिजाबेथ शामिल हैं।

दो पूर्व प्रधानमंत्रियों, वर्ष 1898 में विलियम ग्लैडस्टोन और वर्ष 1965 में विंस्टन चर्चिल - के ताबूत भी वेस्टमिंस्टर हॉल में श्रद्धांजलि के लिए रखे गये थे। चर्चिल का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया था।

बोरमैन कहती हैं, ‘‘मेरे हिसाब से ये काफी सोचा समझा विचार है। मेरा अंदाजा यह है कि इसका मकसद लोगों को राजशाही से छुटकारा पाने से रोकना है।’’

ओवेन्स कहते हैं, ‘‘ यह देशभर में और दुनिया को यह बताने का तरीका है कि महाराजा या महारानी और लोगों के बीच एक प्रकार का आध्यात्मिक संबंध है।’’

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

Share Now

\