देश की खबरें | विचाराधीन कैदी को भी ‘जीने का अधिकार’ है : उच्चतम न्यायालय ने कप्पन पर कहा
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एक विचाराधीन कैदी को भी ‘‘जीने का अधिकार’’ है और इस टिप्पणी के साथ ही ने शीर्ष अदालत ने त्तर प्रदेश सरकार को विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे पत्रकार सिद्दीक कप्पन बेहतर इलाज के लिए दिल्ली के एक अस्पताल में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया।
नयी दिल्ली, 29 अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एक विचाराधीन कैदी को भी ‘‘जीने का अधिकार’’ है और इस टिप्पणी के साथ ही ने शीर्ष अदालत ने त्तर प्रदेश सरकार को विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे पत्रकार सिद्दीक कप्पन बेहतर इलाज के लिए दिल्ली के एक अस्पताल में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया।
कप्पन को पिछले साल हाथरस जाते समय रास्ते में गिरफ्तार किया गया था जहां 14 सितंबर, 2020 को एक दलित युवती की कथित सामूहिक बलात्कार के बाद मौत हो गई थी।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की तीन सदस्यी पीठ ने यह राहत प्रदान करते हुये राज्य सरकार को केरल के पत्रकार को इलाज मुहैया कराने का निर्देश दिया।
पीठ ने बुधवार रात को न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किये गये इस आदेश में कहा, ‘‘हमारा मानना है कि गिरफ्तार शख्स की अस्थिर सेहत को देखते हुए उन्हें पर्याप्त और प्रभावी चिकित्सा सहायता मुहैया कराने और उनकी सेहत से जुड़ी सभी आशंकाओं को खत्म करने की आवश्यकता है।’’
उसने कहा, ‘‘सिद्दीक कप्पन को उचित इलाज के लिए राम मनोहर लोहिया अस्पताल या अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) या दिल्ली के किसी अन्य सरकारी अस्पताल में भर्ती कराना न्याय के हित में होगा। इस संबंध में जरूरी कार्रवाई जल्द से जल्द की जानी चाहिए।’’
शीर्ष अदालत ने स्वस्थ होने के बाद कप्पन को मथुरा की जेल भेज दिया जायेगा।
शीर्ष अदालत ने केरल की पत्रकार यूनियन (केयूडब्ल्यूजे) की ओर से दाखिल याचिका का निस्तारण करते हुए कप्पन को यह छूट दी कि वह गिरफ्तारी के खिलाफ या किसी भी अन्य राहत के लिए उचित मंच पर जा सकते हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत के सुझाव का यह कहते हुए पुरजोर विरोध किया था कि इसी तरह के कई आरोपियों का राज्य के अस्पतालों में उपचार हो रहा है।
बहरहाल न्यायालय ने कहा, ‘‘हमारा कहना है कि एक विचाराधीन कैदी को भी बिना किसी शर्त के ‘जीने का मौलिक अधिकार’ सबसे कीमतीहै।’’
पीठ ने कहा, ‘‘चूंकि जेल के अन्य कैदियों को भी ऐसा ही इलाज मिल रहा है जैसा कि गिरफ्तार पत्रकार को तो यह हमें रोक नहीं सकता। यह कहने की जरूरत नहीं है कि जैसे ही सिद्दीक कप्पन स्वस्थ हो जाएंगे और डॉक्टर उन्हें फिट घोषित कर देंगे तो उन्हें अस्पताल से छुट्टी दी जाए, उन्हें वापस मथुरा जेल भेजा जाएगा।’’
उच्चतम न्यायालय ने कप्पन की मेडिकल रिपोर्टों पर गौर करने के बाद यह आदेश दिया। मेडिकल रिपोर्टों में कहा गया है कि कप्पन 21 अप्रैल 2021 को कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए, उन्हें बुखार था और बाथरूम में गिरने के कारण उन्हें चोटें भी आयी।
इसमें कहा गया है कि कप्पन को के एम मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया जहां पता चला कि उन्हें मधुमेह, दिल की बीमारी, रक्तचाप की समस्या हैं और उन्हें चोट भी आयी है।
बहरहाल इसके बाद पेश की गई मेडिकल रिपोर्ट में बताया कि वह कोविड-19 से संक्रमित नहीं हैं।
केयूडब्ल्यूजे और कप्पन की पत्नी की तरफ से पेश अधिवक्ता विल्स मैथ्यूज ने कहा कि कप्पन को समुचित दवा और उपचार के निर्देश के साथ मामले में अंतरिम जमानत दी जा सकती है।
कप्पन की पत्नी ने हाल ही में प्रधान न्यायाधीश रमण को पत्र लिखकर अस्पताल से उन्हें तुरंत छुट्टी देने की मांग की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि कप्पन को बिस्तर से जंजीर से इस तरह बांध कर रखा गया जैसे किसी जानवर को बांधा जाता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने कप्पन को जंजीर से बांध कर रखने के आरोपों से इनकार किया।
कप्पन को हाथरस घटना की रिपोर्टिंग पर जाने के दौरान रास्ते में गिरफ्तार किया गया था। पिछले साल 14 सितंबर को हाथरस के एक गांव में 19 वर्षीय दलित युवती की सामूहिक बलात्कार के बाद मौत हो गयी थी।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)