देश की खबरें | पति के हाथों बेटी के यौन उत्पीड़न की जानकारी नहीं देने को लेकर महिला के विरूद्ध मामला बंद हो: अदालत
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने पति द्वारा 16 वर्षीय एक बेटी पर कथित यौन हमला करने के बारे में जानकारी नहीं देने पर एक महिला के विरूद्ध आपराधिक कार्यवाही यह कहते हुए बंद कर दी कि वह (महिला) भी अपने ससुराल में गंभीर उत्पीड़न की शिकार रही है।
नयी दिल्ली, 18 सितंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने पति द्वारा 16 वर्षीय एक बेटी पर कथित यौन हमला करने के बारे में जानकारी नहीं देने पर एक महिला के विरूद्ध आपराधिक कार्यवाही यह कहते हुए बंद कर दी कि वह (महिला) भी अपने ससुराल में गंभीर उत्पीड़न की शिकार रही है।
इस नाबालिग के साथ उसके पति ने कथित रूप से कई बार यौन शोषण किया और उसके साथ मारपीट भी की।
न्यायमूर्ति अनीश दयाल ने बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम की धारा 21 (रिपोर्ट करने में या मामला रिकार्ड करने में विफल रहने पर सजा) के तहत महिला के विरूद्ध तय किये गये आरोपों को खारिज कर दिया और कहा कि ऐसी कार्यवाही उसके एवं उसकी बेटी के साथ सर्वथा अन्याय होगा क्योंकि उसकी बेटी पूरी तरह अपनी मां पर आश्रित है।
न्यायमूर्ति दयाल ने कहा कि इसमें देरी तो हुई है, लेकिन महिला अपने पति और परिवार की गंभीर धमकियों के बाद भी अपनी बेटी को मनोचिकित्सक के पास ले गई और उसके बाद उसने इस कथित अपराध की रिपोर्ट स्वयं "तत्परता" से दर्ज कराई।
उच्च न्यायालय ने अपने हालिया आदेश में कहा, ‘‘यह एक सटीक मामला है जिसमें एक पीड़िता खुद ही कानूनी प्रावधान के इस्तेमाल से आरोपी बन गई है तथा मामले के पृष्ठभूमि तथ्यों और परिस्थितियों की अनदेखी की गयी है। एक मां पर उसके ही पति द्वारा बच्चे पर यौन अपराध की रिपोर्ट करने में देरी के लिए मुकदमा चलाने की मांग की गई है, इस तथ्य की उपेक्षा कर दी गयी कि मां खुद भी कथित तौर पर अपने ससुराल में गंभीर यौन और अन्य दुर्व्यवहार का शिकार हुई थी।’’
उच्च न्यायालय ने महिला की याचिका पर यह फैसला सुनाया । महिला ने अपने विरूद्ध लगे आरोपों को चुनौती दी थी।
उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को राहत प्रदान करते हुए कहा, ‘‘इस मामले में इस बात को संज्ञान में लेना कि लड़की द्वारा अपराधों के बारे में अपनी मां को बताये जाने के बाद भी उसने (पुलिस को) जानकारी नहीं दी और इस बात को संज्ञान में नहीं लेना कि मां खुद ही यौन उत्पीड़न की शिकार है, सर्वथा अन्याय होगा।’’
न्यायमूर्ति दयाल ने कहा कि महिला के पति के विरूद्ध सुनवाई कानून के मुताबिक जारी रहेगी।
उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता मां और उसकी बेटी के बयानों से उनके घर की ‘घिनौनी और भ्रष्ट स्थिति’ का पता चलता है, जहां याचिकाकर्ता के पति द्वारा ‘लगातार दुर्व्यवहार’ किया जाता था।
उच्च न्यायालय ने कहा कि इस आशंका को ध्यान में रखना असंभव नहीं है कि रिपोर्ट करने में देरी केवल इसलिए हुई क्योंकि मां और बच्चा दोनों ही भारी सदमें में जी रहे थे तथा पुलिस के पास जाने पर उन्हें और अधिक शारीरिक और यौन शोषण का सामना करना पड़ सकता था।
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