देश की खबरें | शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालयों में अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रणाली बनाने की वकालत की
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नयी दिल्ली, आठ अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने न्यायपालिका में मामलों के बढ़ते बोझ को कम करने के लिए उच्च न्यायालयों में अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रणाली स्थापित करने की बृहस्पतिवार को वकालत की।
शीर्ष अदालत ने इस संबंध में ‘स्वाभाविक समयसीमा’ (नेचुरल डेडलाइन) शब्द का इस्तेमाल किया है और संभवत: इससे आशय प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे के 23 अप्रैल को सेवानिवृत्त होने से है।
शीर्ष अदालत ने विभिन्न उच्च न्यायालयों के वरिष्ठ वकीलों के समूह से डिजिटल कॉन्फ्रेंस करके विचार-विमर्श करने तथा उन चार प्रमुख बिंदुओं पर रूपरेखा एक सप्ताह में तैयार करने को कहा जिससे नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हो सके। इन चार बिंदुओं में शामिल है कि कितने प्रतिशत मामले लंबित रह सकते हैं, कितने अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति की जा सकती है, अस्थायी न्यायाधीशों का कार्यकाल कितना हो सकता है और प्रक्रिया क्या होनी चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल तथा न्यायमूर्ति सूर्यकांत की विशेष पीठ ने कहा, ‘‘हमारे पास ज्यादा समय नहीं है। हमारे सामने स्वाभाविक समयसीमा है। हम हर बिंदु को नहीं सुन सकते क्योंकि इसमें काफी वक्त लगेगा। बेहतर होगा कि आप सभी डिजिटल बातचीत कर लें और अगले बुधवार तक रिपोर्ट जमा करें।’’
पीठ ने अगली सुनवाई के लिए 15 अप्रैल की तारीख तय की।
पीठ एनजीओ लोक प्रहरी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसने लंबित मामलों को कम करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 224ए के तहत उच्च न्यायालयों में अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति करने का अनुरोध किया था।
संविधान का अनुच्छेद 224ए कहता है, ‘‘किसी राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश किसी समय, राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के साथ उस राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर कार्य करने के लिए ऐसे किसी व्यक्ति से अनुरोध कर सकते हैं जो उस अदालत के न्यायाधीश के पद पर या अन्य किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर रहे हों।’’
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