देश की खबरें | नये आपराधिक कानूनों के तहत जांच में प्रयुक्त प्रौद्योगिकी ‘पूरी तरह से विश्वसनीय’ : डीजीपी

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. चंडीगढ़ के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) एसएस यादव ने रविवार को कहा कि नए आपराधिक कानूनों के तहत अपराध जांच में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक ‘पूरी तरह से सुरक्षित’ है, बशर्ते प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया जाए।

चंडीगढ़, आठ दिसंबर चंडीगढ़ के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) एसएस यादव ने रविवार को कहा कि नए आपराधिक कानूनों के तहत अपराध जांच में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक ‘पूरी तरह से सुरक्षित’ है, बशर्ते प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया जाए।

नए कानूनों के तहत, 112 आपातकालीन प्रतिक्रिया हेल्पलाइन पर कॉल प्राप्त करने से लेकर साक्ष्य एकत्र करने तक, जांच के हर चरण को रिकॉर्ड करना अनिवार्य है, जिसकी वीडियो रिकॉर्डिंग, फोटोग्राफ और डिजिटल रूप से विशेष एप्लिकेशन ‘ई-साक्ष्य’ पर अपलोड किया जाता है। ‘ई-साक्ष्य’ राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) द्वारा संचालित क्लाउड-आधारित सेवा है।

यादव ने कहा कि नये कानून और प्रक्रियाएं सुनिश्चित करती हैं कि जांच तीव्र, समयबद्ध, कानूनी रूप से मान्य और स्वतः प्रस्तुत करने योग्य हों।

यह पूछे जाने पर कि क्या प्रौद्योगिकी पर निर्भरता के कारण जांच हैकिंग या दुरुपयोग के नजरिये से संवेदनशील हो गई है, यादव ने कहा, ‘‘यदि प्रोटोकॉल का पालन किया जाए तो प्रौद्योगिकी हमेशा त्रुटिरहित होती है। ई-साक्ष्य एप्लीकेशन में, शुरू से लेकर अंत तक, एक ही ‘हैश वैल्यू’ है, जिससे प्रक्रिया की निरंतरता और त्रुटिरहित प्रणाली सुनिश्चित होती है।’’

‘हैश वैल्यू’ डिजिटल फोरेंसिक के लिए मौलिक हैं, जो डिजिटल साक्ष्य की अखंडता और प्रामाणिकता को सत्यापित करने के लिए एक विश्वसनीय, कुशल और सुरक्षित तरीका प्रदान करते हैं। अपनी जांच प्रक्रियाओं में ‘हैश वैल्यू’ को शामिल करके, फोरेंसिक विशेषज्ञ यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि डिजिटल साक्ष्य विश्वसनीय है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे अधिकारी साक्ष्य एकत्र करने और प्रक्रियाओं का पालन करने के लिए केवल प्रशासन द्वारा जारी टैबलेट का ही उपयोग कर सकते हैं, इसलिए दुरुपयोग की आशंका बहुत ही कम है।’’

यादव ने कहा कि साक्ष्य संग्रहण के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती, क्योंकि पूरी प्रक्रिया - जिसमें गवाहों के बयानों की रिकॉर्डिंग भी शामिल है- को ‘ई-साक्ष्य’ एप्लीकेशन के माध्यम से सीधे क्लाउड पर अपलोड कर दिया जाता है।

उन्होंने बताया कि एक प्रमाण पत्र तैयार किया जाता है, जो 48 घंटे के भीतर अदालत को उपलब्ध करा दिया जाता है।

यादव ने कहा, ‘‘नए कानून आधुनिक और विकसित भारत को दर्शाते हैं। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को 1857 में स्वतंत्रता के लिए हुए पहले विद्रोह के बाद ब्रिटिशकाल में भारत को औपनिवेशिक शासन के अधीन रखने के लिए लागू किया गया था। नए कानूनों का ध्यान नागरिकों और त्वरित न्याय प्रदान करने पर है।’’

उन्होंने कहा कि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध, छीना-झपटी, आर्थिक अपराध और भीड़ द्वारा हत्या (मॉब लिंचिंग) से निपटने के लिए नए प्रावधान पेश किए गए हैं।

उन्होंने कहा कि आईपीसी और सीआरपीसी के प्रावधान अब सामाजिक वास्तविकताओं, अपराधों की बदलती प्रकृति और सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं रह गए हैं।

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