नयी दिल्ली, छह मई कांग्रेस ने पेट्रोल एवं डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाए जाने को लेकर बुधवार को आरोप लगाया कि पेट्रोलियम उत्पादों पर कर लगाकर आम लोगों की गाढ़ी कमाई लूटना ‘आर्थिक देशद्रोह’ है।
पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने यह भी कहा कि पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क के जरिए पिछले छह साल में वसूले गए 17 लाख करोड़ रुपये का क्या हुआ, इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जवाब देना चाहिए।
उन्होंने वीडियो लिंक के माध्यम से संवाददाताओं से कहा, ‘‘ 130 करोड़ भारतीय कोरोना वायरस महामारी से जंग लड़ रहे हैं, रोजी-रोटी की मार झेल रहे हैं, आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं.... वहीं दूसरी ओर संकट के इस समय में भी केंद्र की जनविरोधी भाजपा सरकार देशवासियों की खून पसीने की कमाई लूटने में लगी है।’’
सुरजेवाला ने आरोप लगाया, ‘‘ कच्चे तेल की कीमतें पूरी दुनिया में अपने न्यूनतम स्तर पर हैं। उनका लाभ 130 करोड़ देशवासियों को देने की बजाए मोदी सरकार पेट्रोल और डीज़ल पर निर्दयी तरीके से टैक्स लगाकर मुनाफाखोरी कर रही है। विपदा के समय इस प्रकार पेट्रोल-डीज़ल पर कर लगाकर देशवासियों की गाढ़ी कमाई को लूटना ‘आर्थिक देशद्रोह’ है।’’
उन्होंने सवाल किया, ‘‘4 मई, 2020 को भारत की तेल कंपनियों को कच्चे तेल की लागत 23.38 अमेरिकी डॉलर या 1772 रुपये प्रति बैरल पड़ती है। 1 बैरल में 159 लीटर होते हैं। यानी आज के दिन देश में प्रति लीटर तेल की लागत 11.14 रु. प्रति लीटर है। देशवासियों को 11.14 रुपये प्रति लीटर वाला तेल 71.26 रुपये प्रति लीटर (पेट्रोल) व 69.39 रु. प्रति लीटर डीज़ल क्यों बेचा जा रहा है?’’
सुरजेवाला ने कहा, ‘‘भाजपा सरकार ने 2014-15 से 2019-20 तक यानी 6 वर्षों में 12 बार पेट्रोल व डीज़ल पर टैक्स बढ़ाकर 130 करोड़ भारतीयों से 17 लाख करोड़ रुपये वसूले हैं । इस जबरन वसूली का पैसा कहां गया, जब जनता को कोई राहत ही नहीं मिली ? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सामने आकर 130 करोड़ भारतीयों को जवाब दें।’’
केंद्र सरकार ने मंगलवार रात को पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 10 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 13 रुपए प्रति लीटर बढ़ा दिया।
कोरोना वायरस संक्रमण के चलते मांग नहीं होने के कारण पिछले माह ब्रेंट कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल 18.10 डॉलर के निम्न स्तर पर पहुंच गई थी। यह 1999 के बाद से सबसे कम कीमत थी। हालांकि इसके बाद कीमतों में थोड़ी वृद्धि हुई और यह 28 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई।
हक
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