देश की खबरें | दिव्यांग बच्ची के बलात्कार एवं हत्या के दोषी की मृत्युदंड की सजा उच्चतम न्यायालय ने बरकरार रखी

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने साढ़े सात साल की मानसिक रूप से अस्वस्थ एवं दिव्यांग बच्ची के साथ 2013 में बलात्कार और उसकी हत्या के दोषी को दी गई मौत की सजा को बरकरार रखते हुए शुक्रवार को कहा कि यह अपराध अत्यंत निंदनीय है और अंतरात्मा को झकझोर देने वाला है।

नयी दिल्ली, 24 जून उच्चतम न्यायालय ने साढ़े सात साल की मानसिक रूप से अस्वस्थ एवं दिव्यांग बच्ची के साथ 2013 में बलात्कार और उसकी हत्या के दोषी को दी गई मौत की सजा को बरकरार रखते हुए शुक्रवार को कहा कि यह अपराध अत्यंत निंदनीय है और अंतरात्मा को झकझोर देने वाला है।

दोषी मनोज प्रताप सिंह उस समय 28 वर्ष का था और उसने शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग नाबालिग लड़की का उसके माता-पिता के सामने से 17 जनवरी, 2013 को अपहरण कर लिया था। सिंह ने राजस्थान के राजसमंद जिले में बच्ची के साथ एक सुनसान जगह पर बेरहमी से बलात्कार किया और फिर नृशंस तरीके से उसकी हत्या कर दी।

न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की तीन सदस्यीय पीठ ने मृत्युदंड दिए जाने के राजस्थान उच्च न्यायालय के 29 मई, 2015 के आदेश को बरकरार रखा है।

पीठ ने कहा, ‘‘खासकर, जब पीड़िता (मानसिक रूप से अस्वस्थ और दिव्यांग साढ़े सात साल की बच्ची) को देखा जाए, जिस तरह से पीड़िता का सिर कुचल दिया गया, जिसके कारण उसके सिर की आगे की हड्डी टूट गई और उसे कई चोटें आईं, उसे देखते हुए यह अपराध अत्यंत निंदनीय और अंतरात्मा को झकझोर देता है।’’

उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह मामला अत्यंत दुर्लभ मामलों की श्रेणी में आता है और उसने सत्र अदालत द्वारा इस मामले में पारित आदेश को बरकरार रखा था। उसने कहा था कि सत्र अदालत के आदेश में कोई त्रुटि नहीं है।

उच्चतम न्यायालय की पीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि अगर इस तरह के सबूत पर दोषसिद्धि की जा सकती है तो अपराध की प्रकृति के आधार पर अत्यधिक जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने फैसला लिखते हुए कहा, ‘‘... हमारा स्पष्ट रूप से यह माानना है कि मृत्युदंड को किसी अन्य दंड में बदलने का कोई कारण नहीं है। यहां तक ​​कि बिना किसी छूट के आजीवन कारावास की सजा का विकल्प अपीलकर्ता द्वारा किए गए अपराधों की प्रकृति और उसके आचरण को देखते हुए उचित नहीं लगता है।’’

सर्वोच्च अदालत ने अपने 129 पन्नों के फैसले में, निचली अदालतों के निष्कर्षों से सहमति जतायी कि यह अपराध दुर्लभतम श्रेणी के तहत आता है। दोषी उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले का मूल निवासी है।

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