कोलकाता, 19 अगस्त: कलकत्ता उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश कौशिक चंदा को उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया है. न्यायमूर्ति चंदा उस समय चर्चा में आये थे जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उनकी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से कथित नजदीकी को लेकर सवाल उठाये थे और उन्हें स्थायी न्यायाधीश बनाने तक का विरोध किया था. न्यायमूर्ति चंदा ने तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख बनर्जी की चुनाव याचिका पर सुनवाई से सात जुलाई को खुद को अलग कर लिया था. बनर्जी ने विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम से उनके प्रतिद्वंद्वी शुभेंदु अधिकारी के निर्वाचन को चुनौती दी थी और उन्होंने न्यायमूर्ति चंदा द्वारा उनके प्रति पूर्वाग्रह रखने का आरोप भी लगाया था. प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने 17 अगस्त को बैठक की और इस प्रस्ताव को मंजूरी दी. यह बयान बृहस्पतिवार को शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया गया.
न्यायमूर्ति रमण के अलावा न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर तीन सदस्यीय कॉलेजियम का हिस्सा हैं जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में निर्णय लेता है. ममता बनर्जी के वकील ने अपनी चुनाव याचिका को एक अन्य पीठ को सौंपने का अनुरोध करते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश को पत्र भी लिखा था जिसमें कहा गया था कि मुख्यमंत्री ने ‘‘माननीय न्यायाधीश की कलकत्ता उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी’’ और संबंधित न्यायाधीश की ओर से पूर्वाग्रह की आशंका है. पीठ ने कहा था कि याचिकाकर्ता न्यायाधीश की नियुक्ति के संबंध में अपनी सहमति या आपत्ति के आधार पर अलग होने का अनुरोध नहीं कर सकती है. पीठ ने कहा कि एक न्यायाधीश को एक वादी की अपनी धारणा और कार्रवाई के कारण पक्षपाती नहीं कहा जा सकता है.
न्यायमूर्ति चंदा ने कहा था, ‘‘यदि इस तरह के तर्क को स्वीकार कर लिया जाता है, तो इस अदालत के समक्ष चुनाव याचिका की सुनवाई की कोशिश नहीं की जा सकती क्योंकि याचिकाकर्ता ने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी क्षमता के अनुसार या तो आपत्ति जताई है या अधिकांश माननीय न्यायाधीशों की नियुक्ति पर सहमति दी है.’’ अपने आदेश में, न्यायमूर्ति चंदा ने उल्लेख किया था कि याचिकाकर्ता के वकील द्वारा कलकत्ता उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश को 16 जून को एक पत्र में चुनाव याचिका को किसी अन्य न्यायाधीश को सौंपने का अनुरोध किया गया था जिसमें ‘‘उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति से संबंधित अत्यधिक गोपनीय जानकारी थी और याचिकाकर्ता, राज्य की मुख्यमंत्री होने के नाते, जिन्होंने गोपनीयता की शपथ ली थी, संवैधानिक रूप से ऐसी जानकारी की गोपनीयता बनाए रखने के लिए बाध्य है.’’
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