देश की खबरें | भारत में पिछले दशक में सल्फर डाईऑक्साइड के स्तर में उल्लेखनीय कमी आई : आईआईटी खड़गपुर

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कोलकाता, 20 सितंबर भारत में पिछले एक दशक में उससे पहले के तीन दशकों के मुकाबले सल्फर डाईऑक्साइड (एसओ2) के स्तर में उल्लेखनीय कमी आई है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह दावा किया गया है।

संस्थान के सागर, नदी, वायुमंडल भू विज्ञान केंद्र (कोरल) के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया कि वायुमंडल में एसओ2 के स्तर में आई कमी की वजह पर्यावरण नियमन और ‘स्क्रबर’ और ‘फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन’ जैसी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाना है।

अध्ययन में पिछले चार दशकों (वर्ष 1980 से 2020 तक) में एसओ2 के संक्रेंद्रण में आये बदलाव पर चर्चा की गई है।

अध्ययन में यह रेखांकित किया गया है कि सल्फर डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में 51 प्रतिशत योगदान ताप विद्यृत संयंत्रों का है, जबकि 29 प्रतिशत के लिए निर्माण क्षेत्र जिम्मेदार है।

अध्ययन में यह कहा गया है कि भारत में कोयले के दहन और उत्सर्जन को सीमित करने वाली प्रौद्योगिकी के अभाव के चलते 1980 से 2010 के बीच एसओ2 का उत्सर्जन बढ़ा।

इसमें कहा गया है कि एसओ2 और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के लिए नयी प्रौद्योगिकियों को अपना कर आर्थिक विकास तथा वायु प्रदूषण नियंत्रण साथ-साथ किया जा सकता है।

सल्फर डाईऑक्साइड एक वायुमंडलीय प्रदूषक है और यह नमी आर्द्रता वाली परिस्थितियों में सल्फेट एयरोसेल में तब्दील हो सकता है। ये एयरोसोल वर्षा और क्षेत्रीय जलवायु को प्रभावित कर सकते हैं।

अध्ययन का नेतृत्व करने वाले जयनारायण कुट्टीप्पुरथ ने कहा ‘‘एसओ2 का उच्च संक्रेंद्रण मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी पर बुरा प्रभाव डालते हैं।’’

उन्होंने कहा कि इसलिए इसकी नियमित निगरानी आवश्यक है ताकि उत्सर्जन संबंधी निर्णय लेने में मदद मिल सके।

अनुसंधानपत्र के एक और अहम लेखक विकास कुमार पटेल ने कहा, ‘‘हमने विश्लेषण में पाया कि गंगा का मैदान, मध्य और पूर्वी भारत के क्षेत्र एसओ2 संक्रेंद्रण के केंद्र हैं। हालांकि, इन क्षेत्रों में भी गत एक दशक में एसओ2 के स्तर में कमी आई है, इसके बावजूद यहां एसओ2 का संक्रेंद्रण अधिक है।’’

संस्था के निदेशक वी के तिवारी ने कहा, ‘‘2010 में देश के सतत विकास नीति अपनाने के बाद नवीनीकरण ऊर्जा का उत्पादन भी बढ़ा है। इसके चलते बिजली पैदा करने के लिए कोयले की जगह नवीनीकरण स्रोतों का इस्तेमाल बढ़ा। मजबूत पर्यारवरण नियमन, बेहतर अविष्कार और प्रभावी तकनीक की वजह से भी एसओ2 के स्तर में कमी लाने में मदद मिली है।’’

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