पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था में संतुलन बनाने की प्रधानमंत्री की बात ‘झूठ’: कांग्रेस
कांग्रेस ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि सीओपी28 में की गई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह टिप्पणी ‘झूठ’ है कि भारत ने पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के बीच एक बड़ा संतुलन बनाया है.
नयी दिल्ली, 1 दिसंबर: कांग्रेस ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि सीओपी28 में की गई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह टिप्पणी ‘झूठ’ है कि भारत ने पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के बीच एक बड़ा संतुलन बनाया है. पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में वन एवं पर्यावरण के संरक्षण से संबंधित कानूनों और संस्थाओं को कमजोर किया गया है. प्रधानमंत्री मोदी ने 2028 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन ‘सीओपी33’ की मेजबानी भारत में करने का शुक्रवार को प्रस्ताव रखा और लोगों की भागीदारी के माध्यम से ‘कार्बन सिंक’ बनाने पर केंद्रित ‘ग्रीन क्रेडिट’ पहल की शुरुआत की.
दुबई में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के दौरान राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत ने विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाकर दुनिया के सामने बेहतरीन उदाहरण पेश किया है. पूर्व पर्यावरण मंत्री रमेश ने एक बयान में आरोप लगाया, ‘‘वैश्विक स्तर पर अधिकतम कथनी, स्थानीय स्तर पर न्यूनतम करनी, प्रधानमंत्री इसी सिद्धांत का अनुसरण करते हैं. उन्होंने दुबई में दावा किया है कि भारत ने पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के बीच एक बड़ा संतुलन बनाया है। यह उनका एक चिरपरिचित झूठ है.’’
उन्होंने दावा किया, ‘‘वन संरक्षण अधिनियम, 1980 को 2023 के संशोधन के साथ पूरी तरह से खोखला बना दिया गया है. वन अधिकार अधिनियम 2006 को साल 2022 में एक अधिसूचना के माध्यम से कमजोर कर दिया गया. अब जंगलों को वहां रहने वालों से परामर्श किए बिना साफ किया जा सकता है और वन भूमि का उपयोग करने के लिए अब ग्राम सभाओं की सहमति की आवश्यकता नहीं है.’’ रमेश ने कहा, ‘‘निजी कंपनियों को स्थानीय समुदायों के साथ लाभ साझा किए बिना जंगलों तक आसान पहुंच की अनुमति देने के लिए राष्ट्रीय जैव विविधता अधिनियम, 2002 को बड़े पैमाने पर कमजोर कर दिया गया है.
यह किसी भी आपराधिक प्रावधान को खत्म कर देता है, जिससे प्रधानमंत्री के घनिष्ठ पूंजीवादी मित्रों और जैव विविधता को नष्ट करने वाले अन्य लोगों को छूट मिल जाती है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही थी, तब मोदी सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत नियमों में 39 संशोधन पारित किए। पर्यावरण सुरक्षा में ढील देने के लिए अवैध और प्रतिगामी परिवर्तन किए गए. 2020 से पर्यावरणीय प्रभाव आकलन मानदंडों को लगातार कमजोर किया गया है.’’
कांग्रेस नेता ने दावा किया कि हिमालय जैसे पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में मोदी सरकार ने बड़ी परियोजनाओं को छोटे खंडों में विभाजित करके अवैध रूप से पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की आवश्यकता को नजरअंदाज कर दिया है. सिलक्यारा सुरंग आपदा बड़ी समस्या का एक नमूना मात्र है. कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को 2014 के बाद से लगातार कमजोर किया गया है तथा इसकी रिक्तियों को भरने के लिए मद्रास उच्च न्यायालय को आदेश देना पड़ा.
उन्होंने यह भी दावा किया कि इस प्रमुख संस्था में अहम पदों पर वैज्ञानिक विशेषज्ञों की बजाय नौकरशाहों को नियुक्त किया जा रहा है.
रमेश ने कहा, ‘‘मोदी सरकार के तहत वायु प्रदूषण एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट में बदल गया है, जो जीवन प्रत्याशा के लिए एक बड़ा खतरा है.’’ उन्होंने दावा किया कि मोदी सरकार न केवल देश में बिगड़ते वायु प्रदूषण से निपटने में अप्रभावी रही है, बल्कि उसने कोयला परिवहन और उत्सर्जन के मानदंडों में भी ढील दी है.
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