प्रयागराज, 14 दिसंबर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटी शाही ईदगाह मस्जिद के परिसर का सर्वेक्षण करने के लिए अदालत की निगरानी में अधिवक्ता आयुक्त नियुक्त करने की मांग करने वाली याचिका बृहस्पतिवार को स्वीकार कर ली।
न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा, “आयोग गठित करने के लिए वादी की याचिका स्वीकार की जाती है। जहां तक इस आयोग के तौर तरीकों और प्रारूप का संबंध है, इस अदालत को यह उचित प्रतीत होता है कि इस उद्देश्य के लिए पक्षकारों के वकीलों को सुना जाए।” अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 18 दिसंबर तय की है।
यह याचिका भगवान श्री कृष्ण विराजमान और सात अन्य लोगों द्वारा अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, प्रभाष पांडेय और देवकी नंदन के जरिए दायर की गई थी जिसमें दावा किया गया है कि भगवान कृष्ण की जन्मस्थली उस मस्जिद के नीचे मौजूद है और ऐसे कई संकेत हैं जो यह साबित करते हैं कि वह मस्जिद एक हिंदू मंदिर है।
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के मुताबिक, इस याचिका में कहा गया है कि वहां कमल के आकार का एक स्तंभ है जोकि हिंदू मंदिरों की एक विशेषता है। इसमें यह भी कहा गया है कि वहां शेषनाग की एक प्रतिकृति है जो हिंदू देवताओं में से एक हैं और जिन्होंने जन्म की रात भगवान कृष्ण की रक्षा की थी।
याचिका में यह भी बताया गया कि मस्जिद के स्तंभ के आधार पर हिंदू धार्मिक प्रतीक हैं और नक्काशी में ये साफ दिखते हैं।
आयुक्त की नियुक्ति के लिए आवेदन स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा, “यहां यह उल्लेख करना उचित है कि इस अदालत द्वारा आयुक्त की नियुक्ति के लिए सुनवाई में प्रतिवादी हिस्सा ले सकते हैं। इसके अलावा, यदि वे आयोग की रिपोर्ट से पीड़ित महसूस करते हैं तो उनके पास उस रिपोर्ट के खिलाफ आपत्ति दाखिल करने का अवसर होगा।”
अदालत ने आगे कहा, “आयुक्त द्वारा दाखिल रिपोर्ट हमेशा पक्षकारों के साक्ष्य से संबंधित होती है और यह साक्ष्य में स्वीकार्य है। आयुक्त सक्षम गवाह होते हैं और किसी भी पक्ष की इच्छा पर उन्हें सुनवाई के दौरान साक्ष्य के लिए बुलाया जा सकता है। दूसरे पक्ष के पास जिरह करने का हमेशा एक अवसर होगा।”
अदालत ने कहा, “यह भी ध्यान रखना होगा कि तीन अधिवक्ताओं के पैनल वाले आयोग की नियुक्ति से किसी भी पक्ष को कोई नुकसान नहीं होगा। आयुक्त की रिपोर्ट इस मामले की मेरिट को प्रभावित नहीं करती। आयोग के क्रियान्वयन के दौरान परिसर की पवित्रता सख्ती से बनाए रखने का निर्देश दिया जा सकता है।”
अदालत ने आगे कहा, “यह भी निर्देश दिया जा सकता है कि किसी भी तरीके से ढांचे को कोई नुकसान ना पहुंचे। आयोग उस संपत्ति की वास्तविक स्थिति के आधार पर अपनी निष्पक्ष रिपोर्ट सौंपने को बाध्य है। वादी और प्रतिवादी के प्रतिनिधि अधिवक्ताओं के पैनल के साथ रहकर उनकी मदद कर सकते हैं जिससे जगह की सही स्थिति इस अदालत के समक्ष लाई जा सके।”
इससे पूर्व, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से इस आवेदन का यह कहते हुए विरोध किया गया था कि इस चरण में आवेदन पर कोई आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वाद की पोषणीयता को लेकर उनकी आपत्ति लंबित है।
अदालत के विचाराधीन दो मुद्दे आए। वे यह थे कि क्या आयोग गठित करने के आवेदन से पहले इस आवेदन को खारिज करने की याचिका पर निर्णय लिया जाए या आयोग गठित करने के आवेदन पर पहले निर्णय लिया जाए।
पहले मुद्दे पर अदालत का विचार था, “इस अदालत को प्रतिवादी संख्या एक और दो (मुस्लिम पक्ष) के वकीलों की इस दलील में कोई दम नहीं दिखती कि याचिका खारिज करने के आवेदन पर पहले निर्णय लिया जाए। याचिका खारिज करने के लिए आवेदन उस तिथि को किया गया था जब इस मामले में वादकारियों द्वारा आयोग के गठन के लिए दायर याचिका पर सुनवाई की तारीख तय की गई थी।”
अदालत के आदेश में कहा गया है कि व्यवहार प्रक्रिया संहित के आदेश 16 के नियम 9 के तहत अदालत विवादित मामले को हल करने और विवादित संपत्ति की वास्तवित एवं तथ्यात्मक स्थिति सामने लाने के उद्देश्य से स्थानीय जांच कराने के लिए आयोग का गठन कर सकती है।
संपूर्ण तथ्यों पर गौर करने के बाद अदालत का मत था कि आयोग के गठन के लिए आवेदन पर निर्णय करने से पूर्व उप्र सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और इंतेजामिया मस्जिद कमेटी द्वारा इस आवेदन को खारिज करने की याचिका पर पहले निर्णय करने को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
राजेंद्र
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