जरुरी जानकारी | विदेशों में मजबूती, मांग बढ़ने से बीते सप्ताह तेल-तिलहन कीमतों में सुधार
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on Information at LatestLY हिन्दी. विदेशी बाजारों में तेजी और खाद्य तेलों की मांग बढ़ने के कारण देश के खाद्य तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह लगभग सभी तेल-तिलहनों के दाम मजबूत बंद हुए। देशी डी-आयल्ड केक (डीओसी) के महंगा होने की वजह से कमजोर निर्यात मांग के कारण सोयाबीन तिलहन के दाम में गिरावट देखने को मिली।
नयी दिल्ली, तीन नवंबर विदेशी बाजारों में तेजी और खाद्य तेलों की मांग बढ़ने के कारण देश के खाद्य तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह लगभग सभी तेल-तिलहनों के दाम मजबूत बंद हुए। देशी डी-आयल्ड केक (डीओसी) के महंगा होने की वजह से कमजोर निर्यात मांग के कारण सोयाबीन तिलहन के दाम में गिरावट देखने को मिली।
बाजार सूत्रों ने कहा कि विदेशों में बायोडीजल निर्माण में खाद्य तेल-तिलहनों का इस्तेमाल बढ़ने के कारण विदेशों में सीपीओ और सोयाबीन डीगम तेल के दाम निरंतर मजबूत हो रहे हैं। खाद्य तेल-तिलहनों के बढ़ते इस्तेमाल की वजह से विदेशों में डीओसी का उत्पादन बढ़ने लगा है और वहां डीओसी का बाजार टूटा है। ऊंचे भाव के कारण देशी डीओसी की निर्यात मांग निरंतर घटने लगी है। इसी वजह से देश में सोयाबीन फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दाम पर बिक रही है। आयातित तेल से अब भी देशी तेल महंगा है। इसकी वजह से सोयाबीन तेल की मांग प्रभावित हुई है। अगर सरकार को किसानों को उनकी फसल के वाजिब दाम दिलाने हैं तो किसानों को सोयाबीन डीओसी के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी देनी पड़ेगी।
दूसरी ओर सप्ताहांत के दिनों में विदेशों में खाद्य तेलों के दाम मजबूत होने तथा शिकॉगो एक्सचेंज में मजबूती से सोयाबीन तेल के दाम तेज रहे।
सूत्रों ने कहा कि विदेशों में बाजार तेज होने और घरेलू मांग में सुधार के कारण मूंगफली तेल-तिलहन में मजबूती रही। वैसे राजस्थान जैसे राज्यों में सोयाबीन, सूरजमुखी और मूंगफली तिलहन एमएसपी से नीचे दाम पर बिक रहा है। सरकार के एमएसपी में बढ़ोतरी करने के बाद आयातित तेलों के सामने मूंगफली जैसे खाद्य तेल का बाजार ही नहीं है। इस ओर सरकार को ध्यान देना होगा कि देशी तेल-तिलहनों का बाजार विकसित हो, नहीं तो केवल सरकारी खरीद होने से स्थिति नहीं सुधरेगी।
सूत्रों ने कहा कि यह गलत धारणा है कि खाद्य तेलों के दाम में साधारण वृद्धि से महंगाई बढ़ती है। बल्कि इसके उलट खाद्य तेलों का दाम बांधने के कारण देशी तेल-तिलहनों की पेराई प्रभावित होने से दूध, घी, चिकेन, अंडे आदि के दाम बढ़ते हैं क्योंकि इनका उत्पादन बढ़ाने में तिलहन से प्राप्त होने वाले खल और डीओसी की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इसके मुकाबले खाद्य तेलों की प्रति व्यक्ति खपत भी बेहद मामूली होती है। यानी खाद्य तेलों के दाम बांधकर हम पैसे बचाते भी हैं तो उससे कहीं अधिक खर्च, दूध, अंडे, घी आदि के महंगे दाम चुकाने के जरिये करना पड़ता है।
सूत्रों ने कहा कि तेल विशेषज्ञ केवल खाद्य तेल की महंगाई को लेकर चिंतित रहते हैं। इन चिंताओं से जहां खाद्य तेलों के दाम बंधे रहे, वहीं तिलहन उत्पादन में गिरावट आती चली गई। मूंगफली, सूरजमुखी, महुआ, तिल आदि तेलों का देशी उत्पादन सिमटता चला गया और मौजूदा स्थिति में हम सूरजमुखी तेल के लिए लगभग आयात पर निर्भर हो चले हैं जबकि 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध तक देश इसके लिए आत्मनिर्भर माना जाता था। सरकार को देश में तेल-तिलहन उत्पादन बढ़ाने और इनका बाजार विकसित करने की ओर प्रमुखता से ध्यान देना होगा।
सूत्रों ने कहा कि सरकार को किसानों को उनकी फसल का लाभकारी दाम सुनिश्चित करने का आश्वासन भी देना होगा। आयात शुल्क बढ़ाने या घटाने अथवा तेल संगठनों के साथ बैठक करने से कोई परिणाम निकलता नहीं दिखता। इससे निजात पाने का रास्ता राशन की दुकानों के रास्ते वितरण से या एक विशेष सरकारी पोर्टल पर अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) की नियमित तौर पर उद्घोषणा करना अनिवार्य कर ही निकल सकता है।
सूत्रों ने कहा कि 15 दिसंबर को जिस मिलावटी बिनौला खल का वायदा भाव 3,750 रुपये क्विंटल था वह कपास की नयी फसल आने के समय 2900-2950 रुपये क्विंटल कर दिया गया है ताकि किसानों से कपास नरमा औने-पौने भाव में खरीदा जा सके। किसानों को कपास के बेहतर दाम मिलें इसके लिए जरूरी है कि मिलावटी खल के कारोबार के खिलाफ सख्ती की जाये जो तमाम संगठनों और सरकार के कुछ प्रतिनिधियों की चेतावनियों के बावजूद निरंतर फल-फूल रहा है। मिलावटी खल के कारोबार पर रोक लगाये बिना केवल सरकारी खरीद समस्या का समुचित हल नहीं हो सकती क्योंकि इससे बेजुबान मवेशी बीमार होते हैं।
बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 125 रुपये के सुधार के साथ 6,600-6,650 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का थोक भाव 600 रुपये की तेजी के साथ 14,100 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 120 -120 रुपये की तेजी के साथ क्रमश: 2,280-2,380 रुपये और 2,280-2,405 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुआ।
डीओसी की कमजोर निर्यात मांग से समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और सोयाबीन लूज का थोक भाव क्रमश: 35-35 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 4,725-4,775 रुपये और 4,425-4,460 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। दूसरी ओर, सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम के दाम क्रमश: 750 रुपये, 850 रुपये और 450 रुपये बढ़कर क्रमश: 14,400 रुपये, 14,000 रुपये और 10,500 रुपये क्विंटल पर बंद हुए।
मूंगफली तेल-तिलहन कीमतों में भी पिछले सप्ताहांत के मुकाबले सुधार का रुख रहा। मूंगफली तिलहन 100 रुपये के सुधार के साथ 6,450-6,725 रुपये क्विंटल, मूंगफली तेल गुजरात 225 रुपये की तेजी के साथ 15,325 रुपये क्विंटल और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल का भाव 35 रुपये की तेजी के साथ 2,305-2,605 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ।
कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का दाम 250 रुपये की तेजी के साथ 12,600 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पामोलीन दिल्ली का भाव 700 रुपये की तेजी के साथ 14,500 रुपये प्रति क्विंटल तथा पामोलीन एक्स कांडला तेल का भाव 750 रुपये की तेजी के साथ 13,500 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
तेजी के आम रुख के अनुरूप, समीक्षाधीन सप्ताह में बिनौला तेल भी 400 रुपये की तेजी के साथ 13,000 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
राजेश
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