ताजा खबरें | विधायी प्रभाव आकलन को अनिवार्य बनाने के लिए कानून बनाने की कोई योजना नहीं : केंद्र
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नयी दिल्ली, पांच दिसंबर सरकार ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में कहा कि संसद द्वारा पारित कानूनों के अधिनियमन के पश्चात विधायी प्रभाव आकलन को अनिवार्य बनाने के लिए कानून बनाने की उसकी कोई योजना नहीं है।
विधायी प्रभाव आकलन से तात्पर्य प्रस्तावित और लागू किए गए कानूनों से समाज पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन से है।
विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि भारत सरकार (कार्य आवंटन) नियमावली के तहत, प्रत्येक मंत्रालय या विभाग को विषय आवंटित किए गए हैं, जिन पर वे विधायी प्रस्ताव शुरू करते हैं और उन्हें लागू करते हैं तथा ऐसे कानूनों के लागू होने के बाद उनके सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और न्यायिक प्रभावों का अध्ययन करते हैं।
विधि आयोग को भी मौजूदा कानूनों की समीक्षा करने और उनमें सुधार की सिफारिश करने का अधिकार दिया गया है।
मेघवाल ने आगे कहा कि 23वें (मौजूदा) विधि आयोग को ऐसे कानूनों की पहचान करने का अधिकार दिया गया है, जिनकी अब आवश्यकता नहीं है या जो प्रासंगिक नहीं हैं तथा जिन्हें तत्काल निरस्त किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि आयोग को ऐसे कानूनों की पहचान करने का भी निर्देश दिया गया है, जो मौजूदा आर्थिक आवश्यकताओं और जरूरतों के अनुरूप नहीं हैं और जिनमें संशोधन की आवश्यकता है।
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