देश की खबरें | बिहार के पूर्व मंत्री की हत्या: मुन्ना शुक्ला को आजीवन कारावास, सूरजभान बरी
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने बिहार के पूर्व मंत्री एवं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता बृज बिहारी प्रसाद की 1998 में पटना के एक अस्पताल में हुई सनसनीखेज हत्या के मामले में अपराधी से नेता बने विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला और एक अन्य व्यक्ति को दोषी ठहराया।
नयी दिल्ली, तीन अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने बिहार के पूर्व मंत्री एवं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता बृज बिहारी प्रसाद की 1998 में पटना के एक अस्पताल में हुई सनसनीखेज हत्या के मामले में अपराधी से नेता बने विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला और एक अन्य व्यक्ति को दोषी ठहराया।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने सभी आरोपियों को बरी करने के पटना उच्च न्यायालय के फैसले को आंशिक रूप से खारिज कर दिया और दोषियों पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को 15 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करने को कहा।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने पूर्व सांसद सूरजभान सिंह समेत पांच अन्य आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए उन्हें बरी करने के उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा।
अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के एक प्रभावशाली नेता एवं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व सांसद रमा देवी के पति बृज बिहारी प्रसाद की गोरखपुर के गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला द्वारा हत्या ने बिहार और उत्तर प्रदेश की पुलिस को हिलाकर रख दिया था। श्रीप्रकाश शुक्ला बाद में उत्तर प्रदेश पुलिस के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) और अन्य के साथ मुठभेड़ में मारा गया था।
पीठ ने कहा, ‘‘बृज बिहारी प्रसाद और लक्ष्मेश्वर साहू (प्रसाद के अंगरक्षक) की हत्या के लिए मंटू तिवारी और विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 (हत्या), धारा 34 के तहत आरोप साबित हो चुके हैं और उचित संदेह से परे साबित हो चुके हैं।’’
पीठ ने कहा कि मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी के खिलाफ आईपीसी की धारा 307, धारा 34 के तहत हत्या के प्रयास के आरोप भी साबित हो चुके हैं और उचित संदेह से परे साबित हो चुके हैं।
पीठ ने शुक्ला और तिवारी दोनों को आईपीसी की धारा 302, धारा 34 के तहत आजीवन कारावास और 20,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई और इसके अलावा आईपीसी की धारा 307, धारा 34 के तहत पांच साल के कठोर कारावास की सजा के साथ ही 20,000 रुपये के जुर्माना लगाया।’’
पीठ ने कहा, ‘‘दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी...चूंकि निचली अदालत ने ‘डिफॉल्ट’ सजा नहीं दी है, इसलिए हम निर्देश देते हैं कि प्रत्येक मामले में जुर्माना अदा न करने की स्थिति में मंटू तिवारी और विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला को छह महीने के कठोर कारावास की सजा काटनी होगी।’’
पीठ ने शुक्ला और तिवारी दोनों को दो सप्ताह के भीतर संबंधित जेल अधिकारियों या अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश देते हुए कहा कि अगर वे आत्मसमर्पण नहीं करते हैं, तो अधिकारी कानून के अनुसार उन्हें गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने के लिए उचित कदम उठाएंगे।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने पूर्व सांसद सूरजभान सिंह समेत पांच अन्य आरोपियों को संदेह का लाभ दिया और मामले में उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार उन्हें बरी करने को बरकरार रखा। पीठ ने कहा, ‘‘जहां तक सूरजभान सिंह, मुकेश सिंह, लल्लन सिंह, राम निरंजन चौधरी और राजन तिवारी का सवाल है, हम उन्हें संदेह का लाभ देते हैं और उन्हें बरी करने के फैसले को बरकरार रखते हैं।’’
दो अन्य आरोपियों भूपेंद्र नाथ दुबे और कैप्टन सुनील सिंह की कार्यवाही के दौरान मृत्यु हो गई। मंटू तिवारी, रमा देवी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी देवेंद्रनाथ दूबे का भांजा है। भूपेंद्र नाथ दुबे और देवेंद्रनाथ दूबे भाई थे।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की तत्कालीन उम्मीदवार रमा देवी के खिलाफ समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे देवेंद्र नाथ दुबे की 23 फरवरी, 1998 को मोतिहारी लोकसभा क्षेत्र के लिए पुनर्मतदान से एक दिन पहले हत्या कर दी गई थी और इस मामले में बृज बिहारी प्रसाद और अन्य को आरोपी बनाया गया था।
शीर्ष अदालत ने अभियोजन पक्ष के तीन गवाहों की गवाही पर भरोसा किया, जिनकी गवाही को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था।
पीठ ने कहा, ‘‘भले ही हम शशि भूषण सिंह की गवाही को पूरी तरह से छोड़ दें, पारस नाथ चौधरी, महंत अश्विनी दास और कुछ हद तक रमा देवी और अमरेंद्र कुमार सिन्हा के बयान अन्य सबूतों और सामग्रियों के साथ मंटू तिवारी और विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला के खिलाफ आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त हैं।’’
मामला सात मार्च, 1999 को सीबीआई को सौंपा गया था और केंद्रीय एजेंसी ने पूर्व सांसद सूरजभान सिंह और तीन अन्य को अपराध के साजिशकर्ता के रूप में नामजद किया था।
जांच एजेंसी ने आरोप लगाया था कि 13 जून 1998 को प्रसाद की हत्या से पहले पटना के बेउर जेल में सूरजभान सिंह, मुन्ना शुक्ला, लल्लन सिंह और राम निरंजन चौधरी के बीच एक बैठक हुई थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि बैठक के बारे में कुछ भी स्थापित करने के लिए कोई ठोस सामग्री नहीं है।
24 जुलाई 2014 को उच्च न्यायालय ने सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था और निचली अदालत के 12 अगस्त 2009 के आदेश को खारिज कर दिया था, जिसमें सभी को दोषी ठहराया गया था और सभी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
आरोपी श्रीप्रकाश शुक्ला उर्फ शिव प्रकाश शुक्ला, सुधीर त्रिपाठी और अनुज प्रताप सितंबर 1998 में उत्तर प्रदेश पुलिस के विशेष कार्य बल द्वारा मुठभेड़ में मारे गए थे।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 13 जून 1998 को कई हथियारबंद लोगों ने पटना में इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के अंदर बृज बिहारी प्रसाद और उनके अंगरक्षक की उस समय गोली मारकर हत्या कर दी थी, जब वे टहल रहे थे। उन्हें न्यायिक हिरासत में रहते हुए इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह कथित इंजीनियरिंग कॉलेज प्रवेश घोटाले में आरोपी के रूप में न्यायिक हिरासत में थे।
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