देश की खबरें | मुल्लापेरियार बांध मामला: न्यायालय ने कहा-संसदीय कानून के बावजूद अभी तक नींद से नहीं जागा केंद्र
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने मुल्लापेरियार बांध से जुड़े एक मामले में बुधवार को हैरानी जताई और कहा कि संसद द्वारा बांध सुरक्षा अधिनियम बनाये जाने के बावजूद कार्यपालिका अभी तक नींद से नहीं जागी है।
नयी दिल्ली, आठ जनवरी उच्चतम न्यायालय ने मुल्लापेरियार बांध से जुड़े एक मामले में बुधवार को हैरानी जताई और कहा कि संसद द्वारा बांध सुरक्षा अधिनियम बनाये जाने के बावजूद कार्यपालिका अभी तक नींद से नहीं जागी है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की, जब केरल सरकार ने कहा कि केंद्र ने 130 साल पुराने बांध की सुरक्षा को लेकर अदालत में जारी कार्यवाही बाधित करने के वास्ते 2021 में बांध सुरक्षा अधिनियम बनाया और तब से इस दिशा में कुछ भी नहीं किया गया है।
तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता वी कृष्णमूर्ति ने कहा कि कानून के तहत केंद्र ने एक बांध सुरक्षा प्राधिकरण बनाया है और संरचना का एक ऑडिट किया जाएगा।
याचिकाकर्ता मैथ्यू जे नेदुम्पारा ने इस आधार पर बांध की सुरक्षा पर शीर्ष अदालत के आदेशों की समीक्षा करने का अनुरोध किया है कि अगर पानी बांध को नुकसान पहुंचाता है, तो इससे निचले क्षेत्र में रहने वाले 50 से 60 लाख लोग प्रभावित होंगे।
शीर्ष अदालत ने नोटिस जारी करके मामले में केंद्र की प्रतिक्रिया और अटॉर्नी जनरल की सहायता मांगी।
पीठ ने कहा कि बांध सुरक्षा अधिनियम की धारा 5(2) के तहत कानून के लागू होने की तारीख के 60 दिन के भीतर धारा 5(1) के तहत निर्धारित सदस्यों वाली एक राष्ट्रीय समिति का गठन किया जाना आवश्यक है और उसके बाद हर तीन साल की अवधि में इसका पुनर्गठन किया जाना अनिवार्य है।
पीठ ने कहा, ‘‘हमें सूचित किया गया है कि अभी तक ऐसी कोई राष्ट्रीय समिति गठित नहीं की गई है। यहां तक कि उक्त राष्ट्रीय समिति के गठन, संरचना या कार्यों के संबंध में नियम/विनियम भी तैयार नहीं किए गए हैं।’’
शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु सरकार के इस कथन पर गौर किया कि केन्द्र सरकार ने 21 नवम्बर, 2024 के एक कार्यालय ज्ञापन के माध्यम से राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण के अध्यक्ष के नेतृत्व में एक नयी पर्यवेक्षी समिति गठित की है, जो उच्चतम न्यायालय द्वारा 2014 में गठित पर्यवेक्षी समिति का स्थान लेती है।
उसने कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि बांध सुरक्षा अधिनियम में पर्यवेक्षी समिति के गठन का कोई प्रावधान नहीं है। यह भी प्रतीत होता है कि मुल्लापेरियार बांध के संबंध में मुकदमे के पहले दौर में इस अदालत द्वारा एक पर्यवेक्षी समिति का गठन किया गया था और भारत संघ ने भी पर्यवेक्षी समिति के गठन की संकल्पना की है, संभव है ऐसा इस अदालत के फैसले के संदर्भ में किया गया हो।’’
राष्ट्रीय समिति के गठन और बांध सुरक्षा अधिनियम के अन्य प्रावधानों को प्रभावी बनाने के लिए न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल की सहायता मांगी। शीर्ष अदालत ने अटॉर्नी जनरल को निर्देश दिया कि वे राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण से कानून के तहत उसकी जिम्मेदारी के बारे में निर्देश लें।
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