महाराष्ट्र: अदालत में पूरी क्षमता के साथ हो शुरू हो कामकाज, वकीलों ने लिखा मुख्य न्यायाधीश को पत्र

पत्र में कहा गया है कि इसके साथ ही सुरक्षा एहतियात बरतने और सामाजिक नियमों का पालन करने का भी ध्यान रखा जाए।

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मुंबई, 18 मई वरिष्ठ वकीलों के एक समूह ने बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि अदालत को पूर्ण क्षमता के साथ काम करने की अनुमति देने पर विचार किया जाए और काम करने का समय बढ़ाया जाए।

पत्र में कहा गया है कि इसके साथ ही सुरक्षा एहतियात बरतने और सामाजिक नियमों का पालन करने का भी ध्यान रखा जाए।

बार का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं द्वारा सोमवार को लिखे गए दो पत्रों में उच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों को भी संबोधित किया गया है।

पत्रों में कहा गया है कि निकट भविष्य में कोविड-19 के जड़ से समाप्त होने की संभावना नहीं दिखती और अंततः हमें आवश्यक पाबंदियों को अपनाते हुए नए मापदंडों को स्वीकार करने के साथ जीना सीखना होगा।

अधिवक्ताओं ने कहा कि यह ध्यान में रखना चाहिए कि लॉकडाउन के दौरान हर दिन लंबित मामलों की संख्या, वादकारों और वकीलों की समस्याएं बढ़ रही हैं, इसलिए सामान्य कामकाज बहाल करना उच्च न्यायालय का विवेक पूर्ण निर्णय होगा।

पत्र लिखने वालों में से एक वरिष्ठ वकील अनिल सखारे ने कहा, “हम इस समय लॉकडाउन के चौथे चरण में हैं। जब यह लॉकडाउन समाप्त होगा, तब महामारी की क्या स्थिति होगी यह स्पष्ट नहीं है। हम जानते हैं कि सामाजिक दूरी जैसे कदम मानदंड बन जाएंगे। तब क्यों न सभी एहतियात के साथ सामान्य कामकाज किया जाए।”

उन्होंने कहा, “उच्च न्यायालय दो महीने से सीमित संख्या में कर्मचारियों के साथ काम कर रहा है। हालांकि, आवश्यक मामलों की सुनवाई हो रही है फिर भी बहुत से पुराने और जरूरी मामले फंसे हुए हैं। राज्य भर में हजारों वकील काम पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हमें लंबित मामले, वादकारों की समस्याओं और वकीलों की आर्थिक स्थिति जैसी सभी चीजों को देखना होगा।”

उन्होंने कहा, “हम व्यवस्था को बर्बाद होते नहीं देख सकते।”

देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान बंबई उच्च न्यायालय में सीमित संख्या में कर्मचारियों के साथ सप्ताह में कुछ दिन दो घंटे ही काम हो रहा है।

हालांकि, कुछ वकील आदेश लेने के लिए अदालत आ रहे हैं, फिर भी ज्यादातर मामले वीडियो कांफ्रेंस के जरिये सुने जा रहे हैं।

निचली अदालतें भी केवल आवश्यक मामलों की ही सुनवाई कर रही हैं।

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