मध्य प्रदेश: गोमांस रखने के आरोप में गिराए गए 11 मकान
मध्य प्रदेश में गोमांस रखने के आरोप में प्रशासन ने 11 घरों को तोड़ दिया है.
मध्य प्रदेश में गोमांस रखने के आरोप में प्रशासन ने 11 घरों को तोड़ दिया है. अधिकारियों का दावा है कि मकान अवैध थे, लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि अदालतों द्वारा चेताए जाने के बावजूद घरों को तोड़े जाना रुक क्यों नहीं रहा है.मध्य प्रदेश के मंडला जिले के भैंसवाही गांव में शनिवार, 15 जून को प्रशासन ने 11 लोगों के मकानों पर बुलडोजर चलवा कर तोड़ दिया. एक दिन पहले स्थानीय पुलिस ने एक छापे में इन 11 घरों से गोमांस और जिंदा गाएं बरामद की थीं.
घरों के तोड़े जाने को गोमांस की बरामदगी से जोड़ कर देखा जा रहा है. हालांकि प्रशासन का कहना है कि यह मकान अवैध रूप से सरकारी जमीन पर बनाए गए थे और इन्हें बनवाने वालों को पहले भी इनके बारे में नोटिस दिया गया था.
क्या है मामला
बताया जा रहा है कि सभी आरोपित मुसलमान हैं. एक को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और बाकी 10 की तलाश चल रही है. पुलिस का कहना है कि गुप्त सूचना मिलने के बाद शुक्रवार को इन लोगों के घरों पर छापा मारा गया था.
मंडला पुलिस अधीक्षक रजत सकलेचा ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया कि छापे में फ्रिज में गोमांस और घर में 100 से ज्यादा पशुओं की खाल और कंकाल मिले.
सकलेचा ने यह भी कहा कि इस गांव में पहले भी गो-तस्करी के पांच-छह मामले सामने आ चुके हैं, यह इलाका गो-तस्करी का केंद्र बन चुका है और पुलिस यहां नियमित रूप से नजर रखती है.
मध्य प्रदेश में गौ-हत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए 2010 में ही तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार के कार्यकाल के दौरान एक कड़ा कानून लाया गया था. इसके तहत गोवंश की हत्या और हत्या के इरादे से कहीं ले जाना भी प्रतिबंधित है.
दोषी पाए जाने पर कम से कम 5,000 रुपए जुर्माना और अधिकतम सात साल जेल की सजा का प्रावधान है. इसके अलावा यह कानून एक हेड कांस्टेबल की रैंक के अधिकारी को भी प्रवेश, निरीक्षण, तलाशी और जब्त करने की शक्ति देता है. खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी की होती है.
इस कानून के तहत सजा में कहीं भी आरोपियों के मकान तोड़ दिए जाने का जिक्र नहीं है. इसलिए भैंसवाही में प्रशासन द्वारा की गई इस कार्रवाई पर सवाल उठ रहे हैं. राज्य में इससे पहले भी कई बार इस तरह की घटनाएं सामने आ चुकी है.
प्रशासन का दावा
इन सवालों के जवाब में अधिकारियों ने कहा है कि यह मकान सरकारी जमीन पर अवैध रूप से बनाए गए थे. सकलेचा ने बताया कि मकान 15,000 वर्ग फुट सरकारी जमीन पर अवैध रूप से बनाए गए थे और यह जमीन मवेशियों को चराने के लिए आवंटित की गई थी.
उन्होंने बताया कि राजस्व विभाग ने पहले से इस सिलसिले में नोटिस भेजे हुए थे. सकलेचा ने कहा, "आरोपितों के पास पर्याप्त समय था. जब यह मामला सामने आया तो स्थानीय अधिकारियों ने आरोपितों के खिलाफ तेजी से कदम उठाया और 11 घरों में अवैध हिस्सों को तोड़ दिया."
हालांकि किसी भी अधिकारी ने अभी तक यह नहीं बताया है कि नोटिस कब भेजे गए थे और आरोपियों को कितना समय दिया गया था. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने फरवरी, 2024 में कहा था कि स्थानीय प्रशासन के लिए न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना किसी भी घर को तोड़ना "फैशनेबल" हो गया है.
उस समय हाई कोर्ट उज्जैन के एक मामले की सुनवाई कर रहा था जिसमें नगर पालिका ने दो लोगों के मकान तोड़ दिए थे. अदालत ने नगर पालिका के कदम को मनमाना और गैरकानूनी बताते हुए मकानों के मालिकों को मुआवजा देने और नगर पालिका के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश दिए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने भी मार्च, 2024 में एक अन्य मामले में कहा था कि आवास एक मूलभूत अधिकार है और जब तक सरकारी नीतियों में सस्ते मकान उपलब्ध कराने की कमी रहेगी, तब तक अनाधिकृत मकान बनते रहेंगे.