विदेश की खबरें | लड़कियों और महिलाओं में देर से पता चलता है ऑटिज्म

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on world at LatestLY हिन्दी. मेलबर्न, 13 फरवरी (द कन्वरसेशन) ऑटिज्म यानी स्वलीनता से पीड़ित होना लेकिन इसका पता न लगने से जीवनभर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है और इससे पीड़ित महिलाओं को गलत समझा जा सकता है।

मेलबर्न, 13 फरवरी (द कन्वरसेशन) ऑटिज्म यानी स्वलीनता से पीड़ित होना लेकिन इसका पता न लगने से जीवनभर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है और इससे पीड़ित महिलाओं को गलत समझा जा सकता है।

सेलिब्रिटी महिलाओं-हनाह गैडस्बी, डैरिल हनाह और ब्रिटिश रियल्टी स्टार क्रिस्टीन मैकगिनीज ने पिछले कुछ वर्षों में इस मुद्दे को उठाया है। किशोरावस्था में अपने ऑटिज्म से पीड़ित पाए जाने के बारे में बात करते हुए वे इस मिथक को दूर करने में मदद कर रही हैं कि ऑटिज्म लड़कों तथा पुरुषों के लिए है।

ऑटिज्म 70 में से एक व्यक्ति के विचारों, भावनाओं, संवादों और अनुभवों पर असर डालता है। बचपन में ऑटिज्म से प्रत्येक एक लड़की के मुकाबले तीन लड़के पीड़ित पाए जाते हैं। यह दर समय के साथ काफी कम हुई है। लड़कियों के ऑटिज्म से पीड़ित होने का लड़कों के मुकाबले बाद में पता चलता है।

जिन लड़कियों को ऑटिज्म होता है लेकिन इसका पता नहीं चलता, वे यह समझ नहीं पातीं कि वे कई बार सामाजिक स्थितियों में भ्रमित हो जाती हैं। वे अन्य लोगों के मुकाबले आसानी से दोस्त नहीं बना पातीं और कई बार उन्हें तानेबाजी का शिकार भी होना पड़ता है। इससे वे जीवनभर नाकामी की भावनाओं में खो सकती हैं और उन्हें यह लग सकता है कि उनके चरित्र में कुछ खामियां हैं।

बड़े होते-होते इन अनुभवों से किशोरावस्था में तनाव का अनुभव हो सकता है।

जिन लड़कियों में ऑटिज्म का पता नहीं चलता, उनमें इसके साथ होने वाली दिक्कतों जैसे कि अतिसक्रियता का पता नहीं चलता।

हमारे हाल के अध्ययन में हमने मनोवैज्ञानिक (तमारा) और बाद में ऑटिज्म से पीड़ित पाए जाने वाली महिला (कैरल) के अनुभव लिए। चर्चा में कैरल ने बड़े होते हुए अपने भ्रम और चुनौतियों के बारे में बताया।

दुनिया में लंबे समय से मानसिक स्वास्थ्य को लेकर पक्षपात रहा है कि कुछ लक्षण पुरुषों में ही देखे जाते हैं जबकि बेचैनी जैसे लक्षण महिलाओं में पाए जाते हैं। चिकित्सीय विश्लेषणों से पता चलता है कि जिन महिलाओं को किशोरावस्था में ऑटिज्म से पीड़ित पाए जाने का पता चलता है, उनमें अन्य बीमारियां जैसे कि बेचैनी, तनाव और मूड संबंधी विकार, व्यक्तित्व संबंधी विकार और भोजन संबंधी विकारों का पता चलता है।

गुप्त ऑटिज्म :

अनुसंधान से पता चलता है कि लड़कियां जल्द ही दूसरों की नकल करना सीख लेती हैं जिससे उनकी मुश्किलें ‘‘छुप जाती हैं’’। वे शीशे के सामने खड़े होकर चेहरे के हावभाव बनाने का अभ्यास कर सकती हैं, इसलिए वे आने वाली सामाजिक स्थितियों से मेल खाते हावभाव दे सकती हैं।

रोग की पहचान करना मायने रखता है :

सामाजिक स्थितियों को जल्द न पहचानना ही महिलाओं और लड़कियों को दर्दनाक अनुभव होने का बड़ा जोखिम पैदा करता है। अभिभावकों और शिक्षकों को लड़कियों में ऑटिज्म की पहचान करने तथा उन्हें समझने के लिए बेहतर सहयोग की आवश्यकता है।

जांच के चार तरीके बदलने चाहिए :

ऑटिज्म से पीड़ित महिलाओं के नजरिए से निदान के आकलन पर पुन: विचार की आवश्यकता है : उन्हें ऑटिस्टिक क्षमताओं पर विचार करना चाहिए और केवल बाध्यताओं पर ही ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए। उन्हें ऑटिज्म से पीड़ित महिलाओं के सामान्य जीवन के अनुभव शामिल करने चाहिए। महिलाओं और पुरुषों में ऑटिज्म में अंतर नैदानिक मानदंड में दिखाई देना चाहिए। ऑटिज्म से पीड़ित लोगों को नैदानिक परीक्षणों की रूपरेखा तैयार करने में शामिल करना चाहिए।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

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