देश की खबरें | “क्या यूएपीए लगाने के लिए विरोध प्रदर्शन आयोजित करना पर्याप्त है?” : अदालत ने पुलिस से पूछा
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नयी दिल्ली, आठ जनवरी दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को पुलिस से सवाल किया कि क्या फरवरी 2020 के दंगों के मामले में विरोध प्रदर्शन आयोजित करना आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के लगाने के लिए पर्याप्त है?
अदालत ने साथ ही पुलिस से हिंसा भड़काने में कार्यकर्ता उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य की भूमिका को स्पष्ट करने को कहा।
न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की पीठ ने हिंसा के पीछे कथित "बड़ी साजिश" के मामले में उनकी जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) अमित प्रसाद से यह सवाल पूछा।
पीठ ने टिप्पणी की कि जब तक आरोपी अपने अधिकारों का अतिक्रमण नहीं कर रहे हैं, तब तक कोई विवाद नहीं हो सकता। उनके बारे में बताया गया है कि वे कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे।
इसलिए वकील से "विवरण" प्रस्तुत करने को कहा गया।
पीठ ने पूछा, “ व्हाट्सएप ग्रुप में, उकसाया जाता है कि चलो यह करते हैं...एक योजना जो चक्का जाम की है। हिंसा का संकेत भी मिलता है और हिंसा होती भी है...अगर वे शामिल हैं, तो आप कह सकते हैं कि यूएपीए लागू होता है। लेकिन जब आप जेएसीटी (एक व्हाट्सएप ग्रुप) जैसी चीज की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं और आपका तर्क है कि वे विरोध प्रदर्शनों का आयोजन कर रहे हैं, तो क्या यह काफी है?"
पीठ ने प्रसाद से पूछा कि क्या आपका मामला यह है कि केवल विरोध स्थल ही यूएपीए लगाने के लिए पर्याप्त है या क्या यह एक विरोध स्थल था जिसने हिंसा का मार्ग प्रशस्त किया?
पीठ ने कहा, ‘‘ हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यूएपीए के तहत मंशा को स्थापित किया जाना चाहिए।”
एसपीपी प्रसाद ने कहा कि गवाहों के बयानों सहित सामग्री के आधार पर वर्तमान मामले में प्रत्येक आरोपी की भूमिका की पहचान की गई और यही कारण है कि व्हाट्सएप ग्रुप के सभी सदस्यों को आरोपी नहीं बनाया गया।
प्रसाद ने दलील दी कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन केवल एक "दिखावा" था और वास्तविक योजना "सामूहिक हिंसा" थी।
उन्होंने दावा किया कि साजिश दिसंबर 2019 में शुरू हुई और दंगों का "पहला चरण" 13 दिसंबर, 2019 को शुरू हुआ।
प्रसाद ने कहा कि पुलिस के इस रुख को दोहराया कि विमर्श के विपरीत, शाहीनबाग में विरोध प्रदर्शन "नानी-दादी का प्रदर्शन" नहीं था, क्योंकि यह दिखाने के लिए सबूत हैं और इस प्रदर्शन का "मास्टरमाइंड" शरजील इमाम था।
प्रसाद ने दावा किया कि राजधानी के अन्य स्थानों से महिलाओं को वहां लाया गया था।
अभियोजक ने कहा कि साजिश के दौरान आरोपी व्यक्तियों के साथ कई व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए; उनके बीच गुप्त बैठकें हुईं और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान हिंसा भड़काने और चक्का जाम करने की साजिश रची गई।
सुनवाई के दौरान उन्होंने चांद बाग इलाके का वीडियो भी दिखाया जिसमें भीड़ कथित तौर पर पुलिसकर्मियों पर हमला करते हुई दिख रही है।
अदालत इस मामले की सुनवाई नौ जनवरी को जारी रखेगी।
खालिद, इमाम और अन्य पर फरवरी 2020 के दंगों के कथित "मास्टरमाइंड" होने के आरोप में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। इन दंगों में 53 लोगों की मौत हो गई थी और 700 से ज्यादा लोग जख्मी हो गए थे।
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