देश की खबरें | अनियमित मानसून से फसलों को नुकसान: विशेषज्ञों ने कहा, खाद्य सुरक्षा पर कोई असर नहीं

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. इस मानसून के मौसम में अनियमित बारिश से खरीफ की फसलों की पैदावार में मामूली गिरावट आई है और कृषि एवं खाद्य नीति विशेषज्ञों के अनुसार, इससे खाद्य सुरक्षा पर कोई असर पड़ने या महंगाई बढ़ने की संभावना नहीं है क्योंकि भारत के पास खाद्यान्न का पर्याप्त भंडार है।

नयी दिल्ली, 23 सितंबर इस मानसून के मौसम में अनियमित बारिश से खरीफ की फसलों की पैदावार में मामूली गिरावट आई है और कृषि एवं खाद्य नीति विशेषज्ञों के अनुसार, इससे खाद्य सुरक्षा पर कोई असर पड़ने या महंगाई बढ़ने की संभावना नहीं है क्योंकि भारत के पास खाद्यान्न का पर्याप्त भंडार है।

उन्होंने हालांकि कहा कि अनियमित वर्षा से किसान व्यक्तिगत स्तर पर इससे प्रभावित हो रहे हैं और कई किसानों को अब तक सरकारों से मदद नहीं मिली है।

केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा बुधवार को जारी पूर्व अनुमान के अनुसार, खरीफ चावल की पैदावार में छह प्रतिशत की गिरावट आने की संभावना है जो महत्वपूर्ण धान उत्पादक राज्यों में खराब बारिश के कारण पिछले साल के 11.1 करोड़ टन से घटकर इस साल 10.49 करोड़ टन हो गया है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, गर्मी की मुख्य फसल धान के तहत रकबा, पिछले साल के 4.17 करोड़ हेक्टेयर से घटकर इस साल 3.99 करोड़ हेक्टेयर रह गया है।

निजी मौसम पूर्वानुमान एजेंसी ‘स्काईमेट वेदर’ के उपाध्यक्ष (मौसम विज्ञान एवं जलवायु परिवर्तन) महेश पलावत ने कहा कि मानसून में दक्षिण और मध्य भारत में अत्यधिक वर्षा हुई है जबकि पूर्वी एवं पूर्वोत्तर भारत में वर्षा में कमी देखी गई है।

उन्होंने कहा कि खरीफ चावल उत्पादन में अनुमानित गिरावट भारतीय-गंगीय मैदानों (आईजीपी) में विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में जून से अगस्त तक कम वर्षा से जुड़ी है। साथ ही, मध्य भारत में इस अवधि में अधिक बारिश के कारण फसलों को नुकसान की सूचना मिली।

मौसम विज्ञानी ने कहा कि राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के किसानों ने सितंबर में देरी से बारिश के कारण सोयाबीन, उड़द और मक्के की फसल को नुकसान की सूचना दी। हालांकि, मौजूदा बारिश के दौर और मानसून के लौटने में देरी से उत्तर प्रदेश के किसानों को सरसों की बुआई में मदद मिलेगी।

22 सितंबर तक के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सामान्य से 33 प्रतिशत कम वर्षा हुई। बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में क्रमश: 30 प्रतिशत, 20 प्रतिशत और 15 प्रतिशत बारिश की कमी दर्ज की गई।

15 जुलाई तक उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में क्रमश: 65 प्रतिशत, 42 प्रतिशत, 49 प्रतिशत और 24 प्रतिशत बारिश की कमी रही। गुजरात में एक जून से 31 प्रतिशत अधिक वर्षा (सामान्य 685.7 मिलीमीटर के मुकाबले 901.2 मिलीमीटर) हुई है, जबकि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में 26 प्रतिशत और 24 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में वरिष्ठ वैज्ञानिक विनय सहगल ने कहा कि स्थिति ‘‘चिंताजनक’’ नहीं है क्योंकि मौसम के उत्तरार्ध में मानसून सक्रिय हो गया।

उन्होंने कहा, ‘‘मानसून के देरी से लौटने से आईजीपी में स्थित से उबरने और धान के उत्पादन में नुकसान घटकर चार प्रतिशत तक रहने की उम्मीद है।

उन्होंने कहा कि रिपोर्ट के अनुसार, मध्य एवं दक्षिण भारत में अत्यधिक वर्षा के चलते फसलों को नुकसान ‘‘उतना अधिक नहीं होगा’’। वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा, ‘‘महंगाई के संदर्भ में भी अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि सरकार के पास पहले से ही खाद्यान्न का पर्याप्त भंडार है।’’

सहगल ने कहा कि टुकड़ों वाले चावल के निर्यात पर भारत के प्रतिबंध, पाकिस्तान में अप्रत्याशित बाढ़ के कारण धान की खेती को जबरदस्त नुकसान तथा यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय कीमतों में इजाफा होने की संभावना है।

‘सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर’ के कार्यकारी निदेशक डॉ. जी वी रामंजनेयुलु ने कहा कि कुल उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ेगा और भारत के पास पर्याप्त भंडार है।

उन्होंने ‘पीटीआई-’ से कहा, ‘‘इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य सुरक्षा और महंगाई के संदर्भ में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।’’

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