देश की खबरें | आरटीआई आवेदकों के उत्पीड़न, हत्या के मामले बढ़ रहे हैं, उनकी सुरक्षा चुनौती: रिपोर्ट

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नयी दिल्ली, 11 अक्टूबर सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के कार्यान्वयन की स्थिति पर एक नई रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में आरटीआई आवेदकों के उत्पीड़न और हत्या के मामले बढ़ रहे हैं और आने वाले वर्षों में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना सबसे बड़ी चुनौती है।

आरटीआई दिवस’ की पूर्व संध्या पर ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया’ द्वारा सोमवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 15-16 वर्षों में, कम से कम 95-100 आरटीआई आवेदकों की हत्या हुई है, जबकि 190 अन्य पर हमला किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई ने आत्महत्या की और उनमें से सैकड़ों ने शक्तिशाली लोगों द्वारा उन्हें परेशान किये जाने की सूचना दी।

एक गैर-सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया (टीआईआई) द्वारा ‘स्टेट ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट 2021’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अलावा, सरकार देश के हित में अपनी जान गंवाने वाले आरटीआई कार्यकर्ताओं और सूचना चाहने वालों पर कोई डाटा नहीं रखती है। इसमें कहा गया है, ‘‘आने वाले वर्षों में सबसे बड़ी चुनौती सूचना चाहने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है क्योंकि देशभर में आरटीआई आवेदकों के उत्पीड़न और हत्या के मामले बढ़ रहे हैं।’’

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘कार्यान्वयन की स्थिति में पिछले कुछ वर्षों में सुधार हुआ है, कई मामूली स्तर के अध्ययन अभी भी शहरी-ग्रामीण जनता के बीच अधिनियम के उपयोग में व्यापक अंतर बताते हैं।’’

सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम 12 अक्टूबर, 2005 को लागू हुआ था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा सक्रिय जानकारी देने में गैर-अनुपालन, नागरिकों के प्रति पीआईओ के शत्रुतापूर्ण दृष्टिकोण और जानकारी छिपाने के लिए अधिनियम के प्रावधानों की गलत व्याख्या, सार्वजनिक हित क्या है, इस पर स्पष्टता की कमी, निजता का अधिकार, आरटीआई अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के रास्ते में खड़े हैं। इसमें कहा गया है, ‘‘कई राज्य सूचना आयोग वर्षों से बिना किसी सूचना आयुक्त के चल रहे हैं, सूचना आयोग आरटीआई अधिनियम के अनुपालन पर सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी प्राप्त करने में विफल रहे हैं।’’

इसमें कहा गया है कि वर्तमान में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के 165 पदों में से 36 पद खाली हैं।

भोपाल के एक आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे ने कहा कि आरटीआई अधिनियम में शासन के तरीके को बदलने की क्षमता है। उन्होंने कहा, ‘‘आरटीआई शासन में वांछित जन-हितैषी सुधार ला सकता है, यदि इस कानून को पूरी भावना के साथ लागू किया जाता है। सरकारों को यह सुनिश्चित करने के अलावा आरटीआई आवेदनों और अपीलों का समय पर निपटान सुनिश्चित करना चाहिए कि केंद्रीय और राज्य सूचना आयोग हर समय पूरी क्षमता से काम करें।’’

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