India-China Faceoff: पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले स्थानों से हटने पर सहमत हुई भारत और चीन की सेना

सीमा के पास स्थिति उस वक्त बिगड़ गई थी जब 15 जून को गलवान घाटी में दोनों देश की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हो गई और घटना के बाद दोनों पक्ष 3,500 किलोमीटर की सीमा के अधिकतर क्षेत्रों में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाने लगे.

भारत-चीन -प्रतीकात्मक तस्वीर | (Photo Credits: IANS)

नई दिल्ली: भारत और चीन (China) की सेना के बीच पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले सभी स्थानों से “हटने पर परस्पर सहमति” बन गई है. सैन्य सूत्रों ने मंगलवार को बताया कि गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिकों के शहीद होने के बाद सीमा पर दोनों देशों के बीच बढ़े विवाद के बीच यह महत्त्वपूर्ण कदम है.

पूर्वी लद्दाख में पिछले छह हफ्तों से चल रहे गतिरोध में उलझे बलों को पीछे हटाने का फैसला सोमवार को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन की तरफ मोलदो में भारत और चीन के वरिष्ठ कमांडरों के बीच करीब 11 घंटे चली बैठक में लिया गया.

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सूत्रों ने लेफ्टिनेंट जनरल स्तर पर हुई दूसरी बैठक का ब्योरा देते हुए बताया कि वार्ता “सौहार्दपूर्ण, सकारात्मक और रचनात्मक माहौल’’ में हुई और यह निर्णय लिया गया कि दोनों पक्ष पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले सभी स्थानों से हटने के तौर तरीकों को अमल में लाएंगे. एक सूत्र ने कहा, “पीछे हटने को लेकर परस्पर सहमति बनी है. पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले सभी स्थानों से हटने के तौर-तरीकों पर चर्चा की गई और दोनों पक्ष इसे अमल में लाएंगे.”

बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि स्थिति सहज बनाने के लिए जरूरी कदम उठाने तथा लंबित मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच ‘‘स्पष्ट और गहराई ’’ से बातचीत हुई. सूत्रों ने कहा कि वहां तैनात कमांडर पीछे हटने की विस्तृत रुपरेखा को अंतिम रूप देने के लिए अगले कुछ हफ्तों में कई बैठकें करेंगे.

इस बीच, थल सेना प्रमुख एम एम नरवणे ने लेह पहुंचने के बाद कमांडरों के साथ लद्दाख क्षेत्र में सेना की समग्र तैयारियों की समीक्षा की. सेना प्रमुख क्षेत्र के दो दिनों के दौरे के दौरान विभिन्न अग्रिम इलाकों का दौरा करेंगे.

उधर, चीन को लक्ष्य बनाकर दिए गए एक संदेश में, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि दुनिया की प्रमुख आवाजें “हर तरह” से अनुकरणीय होनी चाहिए और साझेदारों के हितों को मान्यता देते हुए उन्हें अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान करने की जरूरत है.

जयशंकर ने रूस-भारत-चीन के त्रिपक्षीय डिजिटल सम्मेलन में ये टिप्पणियां चीन के विदेश मंत्री वांग यी और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की उपस्थिति में की. जयशंकर ने कहा, “यह विशेष बैठक अंतरराष्ट्रीय संबंधों के स्थापित सिद्धांतों पर हमारे विश्वास को दोहराती है. लेकिन वर्तमान में चुनौतियां अवधारणाओं और मानदंडों मात्र की नहीं हैं बल्कि उनके अमल की भी हैं.’’

मंत्री ने किसी देश का नाम लिए बिना कहा,‘‘ विश्व की प्रमुख आवाजों को हर तरीके से अनुकरणीय होना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान ,साझेदारों के वैध हितों को मान्यता देना, बहुपक्षवाद को समर्थन देना और सभी के हितों को बढ़ावा देना ही टिकाऊ विश्व व्यवस्था के निर्माण का एकमात्र तरीका है.’’

भारत और चीन के बीच तनाव के बारे में पूछे जाने पर, लावरोव ने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता से इनकार करते हुए कहा कि अपने विवादों को हल करने के लिये दोनों देशों को किसी सहायता की जरूरत नहीं है.

स्पूतनिक न्यूज ने लावरोव के हवाले से कहा, “जैसे ही सीमा पर घटना हुई, मौके पर मौजूद सैन्य कमांडरों और विदेश मंत्रियों के बीच संपर्क स्थापित किया गया और बैठकें की गईं.”

पिछले छह हफ्ते से पैंगोंग सो, गलवान घाटी, गोगरा हॉट स्प्रिंग और कई अन्य स्थानों पर चीन और भारत की सेनाओं के बीच गतिरोध बना हुआ है. लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की पहली वार्ता छह जून को हुई थी जिसमें दोनों पक्ष गलवान घाटी में टकराव वाले सभी स्थानों से धीरे-धीरे पीछे हटने पर सहमत हुए थे.

लेकिन 15 जून को गलवान घाटी में झड़प के बाद स्थिति बिगड़ती चली गयी और दोनों पक्ष 3,500 किलोमीटर की सीमा के अधिकतर क्षेत्रों में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाने लगे. सोमवार की वार्ता में भारतीय पक्ष की अगुवाई 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने और चीनी पक्ष की अगुवाई तिब्बत सैन्य जिला कमांडर मेजर जनरल ल्यू लिन ने की.

लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की पहली वार्ता छह जून को हुई थी जिसमें दोनों पक्षों ने गलवान घाटी से शुरू करते हुए गतिरोध वाले सभी स्थानों से हटने को लेकर एक समझौते को अंतिम रूप दिया था. हालांकि, सीमा के पास स्थिति उस वक्त बिगड़ गई थी जब 15 जून को गलवान घाटी में दोनों देश की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हो गई और घटना के बाद दोनों पक्ष 3,500 किलोमीटर की सीमा के अधिकतर क्षेत्रों में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाने लगे.

सरकार ने रविवार को एलएसी पर चीन के किसी भी दुस्साहस का ‘‘मुंहतोड़ जवाब’’ देने के लिए सेना को ‘‘पूरी छूट’’ दी थी. सेना ने बीते एक हफ्ते में सीमा से लगे अग्रिम ठिकानों पर हजारों अतिरिक्त जवानों को भेजा है. वायुसेना ने भी झड़प के बाद श्रीनगर और लेह समेत अपने कई अहम ठिकानों पर सुखोई 30 एमकेआई, जगुआर, मिराज 2000 लड़ाकू विमानों के साथ ही अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टरों की तैनाती की है.

गलवान घाटी संघर्ष के बाद, दोनों पक्षों के बीच तनाव को कम करने के तरीके तलाशने के लिए मेजर जनरल स्तर की कम से कम तीन चरण की वार्ता हुई है. इस घटनाक्रम से जुड़े लोगों ने बताया कि वार्ता में भारतीय पक्ष ने गलवान घाटी में चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय सैनिकों पर ‘‘पूर्वनियोजित’’ हमले का मामला प्रमुखता से उठाया और पूर्वी लद्दाख के सभी इलाकों से तत्काल चीनी सैनिकों को हटाने की मांग की.

उन्होंने कहा कि भारतीय पक्ष ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों को अपने अड्डों में सैनिकों की संख्या घटाने का भी सुझाव दिया. समझा जाता है कि छह जून और 22 जून को हुई दोनों बैठकों के आयोजन का अनुरोध चीनी सेना की तरफ से किया गया.

पूर्वी लद्दाख में स्थिति तब बिगड़ गई थी जब करीब 250 चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच पांच और छह मई को हिंसक झड़प हुई. पैंगोंग सो के बाद उत्तरी सिक्किम में नौ मई को झड़प हुई. झड़प के पहले दोनों पक्ष सीमा मुद्दों का अंतिम समाधान होने तक सीमाई इलाके में अमन-चैन बनाए रखने पर जोर दे रहे थे.

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