देश की खबरें | वैवाहिक विवादों में जीतने के लिए गंभीर आरोप लगाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है: अदालत

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक विवादों में जीतने के लिए गंभीर आरोप लगाने की ‘बढ़ती प्रवृत्ति’ पर ध्यान देते हुए, दूसरे पक्ष को परेशान करने और डराने-धमकाने के लिए बच्चों को औजार के रूप में इस्तेमाल करने के चलन पर अप्रसन्नता जताई है।

नयी दिल्ली, आठ सितंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक विवादों में जीतने के लिए गंभीर आरोप लगाने की ‘बढ़ती प्रवृत्ति’ पर ध्यान देते हुए, दूसरे पक्ष को परेशान करने और डराने-धमकाने के लिए बच्चों को औजार के रूप में इस्तेमाल करने के चलन पर अप्रसन्नता जताई है।

अदालत ने ‘यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण’ (पॉक्सो) अधिनियम के तहत एक पिता के खिलाफ मामले को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। व्यक्ति से अलग रह रही उसकी पत्नी ने इस मामले में शिकायत की थी और उससे समझौते के आधार पर मामला रद्द कर दिया गया।

न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने कहा कि मौजूदा मामले में जाहिर तौर पर दोनों पक्षों के बीच वैवाहिक असहमतियों के कारण विवाद हुआ जिसमें पति के खिलाफ मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न, क्रूरता, दहेज की मांग और बेटी के निजी अंग अनुचित तरीके से छूने आदि के लिए दो प्राथमिकियां दर्ज की गयी थीं।

दोनों पक्षों के बीच सहमति से तलाक के बाद समझौते के मद्देनजर अदालत ने व्यवस्था दी कि जब फरियादी महिला मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहती तो इसे जारी रखने से कोई मकसद हल नहीं होगा। अदालत ने कहा कि ‘नासमझी’ की वजह से पॉक्सो के तहत एक मामला दर्ज किये जाने की बात स्वीकारी गयी है।

अदालत ने हाल में दिये इस आदेश में कहा, “यह अदालत केवल वैवाहिक विवादों में जीतने के लिए दोनों पक्षों में एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाने की बढ़ती प्रवृत्ति को स्वीकार करती है और दूसरे पक्ष को परेशान करने या डराने-धमकाने के लिए आपराधिक न्याय प्रणाली में बच्चों को एक साधन के रूप में इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति की कड़ी निंदा करती है।’’

अदालत ने कहा, ‘‘जैसा भी हो, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस न्यायालय के पास न्याय के उद्देश्य को सुरक्षित करने या अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए किसी भी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र है।''

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