खेल की खबरें | पुरानी प्रणाली में चौथी छलांग गलत नहीं होती: राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण चूकने पर श्रीशंकर

बर्मिंघम, पांच अगस्त राष्ट्रमंडल खेलों के रजत पदक विजेता लंबी कूद एथलीट मुरली श्रीशंकर ने स्वर्ण पदक से चूकने पर अफसोस जताते हुए कहा कि लेजर-आधारित नयी तकनीक के तहत उनके चौथे प्रयास को ‘फाउल (अवैध)’ करार दिया गया था जबकि पुरानी प्रणाली में उनकी यह छलांग वैध और शीर्ष स्थान के लिए काफी होती।

इस स्पर्धा में श्रीशंकर और स्वर्ण पदक जीतने वाले बहामास के लेकुआन नेर्न ने एक समान 8.08 मीटर का सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया था। लेकुआन का दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रयास हालांकि 7.98 मीटर का रहा जो श्रीशंकर के 7.84 मीटर के दूसरे सर्वश्रेष्ठ प्रयास से बेहतर रहा जिसके कारण उन्हें विजेता घोषित किया गया।

तेईस साल के श्रीशंकर ने कहा कि उन्होंने शुरू में सोचा था कि उनका चौथा प्रयास वैध होगा और वह बड़ी अंतर से जीत दर्ज करेंगे लेकिन उनकी इस छलांग को लेजर तकनीक की मदद से ‘फाउल’ करार दिया गया।

श्रीशंकर ने ऑनलाइन मीडिया सत्र में कहा, ‘‘ मैं बहुत हैरान था, आप इसे (चौथी छलांग) ‘फाउल’ नहीं कह सकते क्योंकि मैंने फाउल बोर्ड को पार नहीं किया लेकिन मैच अधिकारी ने मेरे कूदने की स्थिति के बारे में बताया। उसके मुताबिक मेरा पैर लंबवत प्लेट को पार कर रहा था।’’

इस राष्ट्रीय रिकॉर्डधारी (8.36 मीटर) ने कहा, ‘‘ पुरानी प्रणाली में इसे फाउल नहीं किया जाता।’’

श्रीशंकर ने पहली बार मार्च में बेलग्रेड में विश्व इंडोर चैंपियनशिप के दौरान नयी प्रणाली का अनुभव किया, जहां वह सातवें स्थान पर रहे थे।

उन्होंने कहा, ‘‘पहले, फाउल बोर्ड पर 45 डिग्री पर झुकाव होता था लेकिन इस साल से यह ‘फाउल बोर्ड’ और ‘टेक ऑफ बोर्ड’ के बीच में सिर्फ एक लंबवत प्लेट था। वर्तमान परिदृश्य में यहां ‘सही टेक ऑफ’ करना आदर्श नहीं है।

विश्व चैंपियनशिप में सातवें स्थान पर रहने वाले श्रीशंकर ने कहा कि नयी प्रणाली मानवीय भूल को दूर करेगी और एथलीटों को तकनीक के साथ तालमेल बिठाना होगा।

भारतीय एथलेटिक्स महासंघ (एएफआई) के अध्यक्ष और विश्व एथलेटिक्स परिषद के सदस्य आदिल सुमरिवाला ने नयी प्रणाली का समर्थन करते हुए कहा कि इससे कूद की दूरी मापने में हेरफेर बंद हो जाएगा।

उन्होंने कहा, ‘‘यह प्रणाली एक आदर्श है क्योंकि यह ‘टेक-ऑफ’ और माप के लिए  इसमें  लेजर आधारित तकनीक का इस्तेमाल होता है।  यह सभी प्रकार की मानवीय त्रुटि और यहां तक कि हेरफेर को भी दूर करेगा जैसा कि हमने अतीत में देखा है।’’

यह पूछे जाने पर कि यह प्रणाली भारत में कब आ सकती है, उन्होंने कहा, ‘यह बहुत महंगी प्रणाली है। इसका उपयोग वर्तमान में ओलंपिक, विश्व चैंपियनशिप और डायमंड लीग (सीडब्ल्यूजी के अलावा) में किया जाता है।’’

उन्होंने उम्मीद जताई की ‘समय के साथ भारत में भी इसका इस्तेमाल शुरू होगा।’’

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