नहीं रहे पूर्व पीएम मनमोहन सिंह

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 साल की आयु में निधन हो गया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 साल की आयु में निधन हो गया है. उन्होंने नई दिल्ली के एम्स में आखिरी सांस ली.मनमोहन सिंह दस साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे. इस दौरान उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार का नेतृत्व किया. इससे पहले वह 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री रहे. उन्हें इस दौरान हुए आर्थिक सुधारों का श्रेय भी दिया जाता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर दुख जताया है. एक्स पर उन्होंने लिखा कि मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री समेत कई अहम पदों पर काम किया और प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए व्यापक काम किया.

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने पूर्व पीएम के निधन पर कहा है कि उन्होंने एक मेंटर और एक गाइड खो दिया है. एक्स पर उन्होंने लिखा, "हम लाखों लोग जो उन्हें सराहते हैं, उन्हें बेहद गर्व के साथ याद करेंगे."

इससे पहले एम्स की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि बढ़ती उम्र से संबंधित बीमारियों के लिए उनका इलाज किया जा रहा था और उन्हें भारतीय समय के अनुसार रात 9 बजकर 51 मिनट पर मृत घोषित किया गया.

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा उन्हें श्रद्धांजलि देने वाले सबसे पहले नेताओं में से एक रहे. उन्होंने एक्स पर अपनी पोस्ट में मनमोहन सिंह के निधन को अपूर्णीय क्षति बताया है.

फर्श से अर्श तक का सफर

मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के एक गांव में हुआ था. उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में ऑनर्स की डिग्री ली और फिर ऑक्सफॉर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में ही डी.फिल किया. इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल और इकोनॉमिक्स में छात्रों को पढ़ाया.

वे 1971 में वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार बनाए गए. 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया. आगे चलकर उन्होंने वित्त मंत्रालय के सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय भारतीय रिजर्व बैंक के अध्यक्ष, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के तौर पर काम किया.

मनमोहन सिंह 1991 से अप्रैल 2024 तक राज्यसभा सांसद रहे. 1998 से 2004 तक वह राज्यसभा में विपक्ष के नेता भी थे. इसके बाद वह दस सालों तक प्रधानमंत्री रहे. उन्हें 1987 में भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण दिया जा चुका है. उनके परिवार में पत्नी गुरशरण कौर और तीन बेटियां हैं.

पहले स्कूल का पहला दिन, "दाखिला क्रमांक 187"

मनमोहन सिंह की निजी जिंदगी, खासतौर पर उनके शुरुआती सालों के बारे में सबसे ब्योरेवार जानकारी उनकी बेटी दमन सिंह की लिखी एक किताब "स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरशरण" से मिलती है. मनमोहन के पिता गुरमुख सिंह एक कमीशन एजेंट के फर्म में क्लर्क थे. ये कंपनी अफगानिस्तान से सूखे मेवे मंगवाकर भारत में बेचती थी.

मनमोहन सिंह का पैतृक गांव गाह, अविभाजित पंजाब के झेलम जिले में बड़ा सुदूर का इलाका था. दमन सिंह, अपने पिता के हवाले से किताब में लिखती हैं कि मनमोहन की मां अमृत की जब टाइफाइड से मौत हुई, तो उनकी उम्र इतनी भी नहीं थी कि वो याद रख पाते कि मां कैसी थी. इसके बाद मनमोहन गांव में ही अपने दादा संत सिंह और दादी जमना देवी के साथ रहे. मिट्टी का छोटा सा दो कमरों का घर था, नाते-रिश्तेदार खूब थे.

किताब में दमन सिंह ने उस दिन का भी किस्सा लिखा है, जब गांव के स्कूल में मनमोहन का दाखिला कराया गया. स्कूल के शिक्षक दौलतराम ने रजिस्टर में नामांकन करते हुए लिखा, "नंबर 187. पिता का नाम, गुरमुख सिंह. जाति, कोहली. पेशा, दुकानदार. तारीख: 17 अप्रैल, 1937."

गाह में केवल चौथी तक का स्कूल था, तो दादा-दादी ने भारी मन से मनमोहन को आगे की पढ़ाई के लिए चाचा गोपाल सिंह के पास चकवाल भेज दिया. मनमोहन को तब सबसे कीमती चीज किताब लगती थी. किताब का एक पन्ना फट जाए, या दाग लग जाए तो उसकी जगह नई किताब ले आते थे. चाची दही लाने बाजार भेजतीं, तो रास्ते में ही चुपके से मलाई खा जाते. अपनी चचेरी बहन तरना से चुपके से मिले पैसों से बाजार जाकर खूब मिर्च वाले छोले खाते, जो उनका पसंदीदा खाना हुआ करता था.

दमन बताती हैं कि बचपन के इन दिनों की सबसे अच्छी यादें पूछने पर मनमोहन हमेशा अपनी दादी की कहानियां सुनाते थे. बंटवारे के समय क्या लेकर निकले थे, ये पूछने पर मनमोहन ने जवाब दिया था, "कुछ कपड़े, बिस्तर. और, साथ में थोड़े रुपये." उनकी दादी ने एक बक्से में जरूरी चीजें रखकर एक पड़ोसी के पास अमानत रखी थी, इस उम्मीद में कि शायद कभी लौटना हो. इस बक्से में मनमोहन की मां अमृत की बनाई फुलकारियां थीं, जो तब महिलाएं अपनी बेटियों को शादी में देने के लिए बनाया करती थीं. बाद के महीनों में जब किसी को वो बक्सा लेने भेजा गया, तो पड़ोसी ने दिया नहीं.

"जिसकी जेब में हमेशा सूखे मावे भरे रहते थे"

दमन सिंह लिखती हैं कि उन्हें मनमोहन के एक स्कूली दोस्त राजा अली मुहम्मद से पता चला कि गाह के कुछ पुराने लोगों को बहुत हाल तक मनमोहन की याद रही. उनसे जुड़ी स्मृतियों की झलकियों में मनमोहन सिंह का परिचय कुछ यूं दिया जाता कि "उसकी जेब में हमेशा सूखे मावे भरे रहते थे." किसी को ये याद रहा कि "मोहन कंचे के खेल में बुरा था" या कि "हम उसे उठाकर गांव के तालाब में फेंक देते थे."

दमन बताती हैं कि परवेज मुशर्रफ ने एक दफा मनमोहन सिंह को उनके गांव की वॉटरकलर से बनी एक तस्वीर भेंट की. किसी ने गाह के पानी से भरी एक बोतल भी उनके घर पहुंचाई थी. तब, दमन ने पिता से पूछा कि क्या कभी वो अपना गांव देखने जाना चाहते हैं. उन्होंने इनकार करते हुए कहा, "नहीं. वो ही जगह है, जहां मेरे दादा को मार डाला गया था."

एएस/एके/एसएम (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)

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