देश की खबरें | ‘फर्जी डिग्री विवाद’ : संजीव नासियार को दिल्ली विधिज्ञ परिषद के उपाध्यक्ष पद से हटाने पर रोक
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नयी दिल्ली, नौ दिसंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) के उस प्रस्ताव पर रोक लगा दी जिसके तहत अधिवक्ता संजीव नासियार को उनकी कानून की डिग्री की प्रामाणिकता की जांच पूरी होने तक दिल्ली विधिज्ञ परिषद (बीसीडी) के उपाध्यक्ष पद से हटा दिया गया था।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने बीसीआई के सात दिसंबर के प्रस्ताव को चुनौती देने वाली नासियार की याचिका पर अंतरिम आदेश पारित किया और मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी, 2025 तय की।
नासियार आम आदमी पार्टी (आप) के कानून प्रकोष्ठ के अध्यक्ष भी हैं। उनके पास देवी अहिल्या बाई विश्वविद्यालय, इंदौर से कानून की डिग्री है।
बीसीआई ने आठ दिसंबर को जारी एक विज्ञप्ति में कहा, ‘‘बीसीआई द्वारा गठित उप-समिति ने गहन जांच के बाद निष्कर्ष निकाला है कि संजीव नासियार की एलएलबी (ऑनर्स) डिग्री की प्रामाणिकता अत्यधिक संदिग्ध है।’’
इसमें कहा गया है कि बीसीआई की आम परिषद ने समिति की रिपोर्ट को स्वीकार करने का संकल्प लिया है और बीसीआई सचिव को निर्देश दिया गया है कि वह केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से संपर्क कर डिग्री की प्रामाणिकता की जांच करने का अनुरोध करें।
बीसीआई सचिव श्रीमंतो सेन द्वारा हस्ताक्षरित विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘‘जांच के परिणाम आने तक संजीव नासियार को दिल्ली विधिज्ञ परिषद के उपाध्यक्ष पद से हटा दिया गया है।’’
उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान नासियार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा ने दलील दी कि विधिज्ञ परिषद के नियमों के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव पारित करके बीसीडी के निर्वाचित पदाधिकारियों को हटाने का प्रावधान है।
उन्होंने दलील दी कि बीसीआई के पास उन शक्तियों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है जो विशेष रूप से बीसीडी के अधिकार क्षेत्र में आती हैं। पाहवा ने तर्क दिया कि विश्वविद्यालय पहले ही पुष्टि कर चुका है कि नासियार की डिग्री असली है।
अदालत से अंतरिम आदेश पारित करने का आग्रह करते हुए पाहवा ने कहा कि नासियार को सोमवार को बीसीडी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेना था और यदि बीसीआई के निर्णय पर रोक नहीं लगाई गई तो यह ‘‘उनकी प्रतिष्ठा के लिए नुकसानदायक’’ होगा।
बीसीआई का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कीर्तिमान सिंह और वकील टी सिंहदेव ने याचिका का विरोध किया और कहा कि उप-समिति ने विश्वविद्यालय का दौरा किया और दस्तावेजों का अवलोकन किया, जिसके बाद उसने अपनी रिपोर्ट आम परिषद को सौंपी।
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