देश की खबरें | दिल्ली की अदालत ने जुबैर की जमानत याचिका खारिज की, 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. दिल्ली की एक अदालत ने आरोपी के कथित अपराध की प्रकृति और गंभीरता का हवाला देते हुए शनिवार को ऑल्ट न्यूज के सह संस्थापक मोहम्मद जुबैर की जमानत याचिका खारिज कर दी और उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। हालांकि इससे पहले दिन में इस मामले को लेकर उस वक्त नाटकीय घटनाक्रम देखने को मिला जब दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अदालत के फैसला सुनाने से पहले ही मीडिया को आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेजे जाने की सूचना दे दी थी।

नयी दिल्ली, दो जुलाई दिल्ली की एक अदालत ने आरोपी के कथित अपराध की प्रकृति और गंभीरता का हवाला देते हुए शनिवार को ऑल्ट न्यूज के सह संस्थापक मोहम्मद जुबैर की जमानत याचिका खारिज कर दी और उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। हालांकि इससे पहले दिन में इस मामले को लेकर उस वक्त नाटकीय घटनाक्रम देखने को मिला जब दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अदालत के फैसला सुनाने से पहले ही मीडिया को आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेजे जाने की सूचना दे दी थी।

जुबैर वर्ष 2018 में हिंदू देवता के बारे में कथित ‘‘आपत्तिजनक ट्वीट’’ करने के मामले में आरोपी है और दिल्ली पुलिस ने उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120बी (आपराधिक साजिश) और 201 (साक्ष्य मिटाना) तथा विदेश अंशदान (विनियमन) अधिनियम की धारा 35 भी जोड़ी है।

सुनवाई के दौरान, सरकारी वकील अतुल श्रीवास्तव ने आरोप लगाया कि आरोपी ने पाकिस्तान, सीरिया और अन्य देशों से ‘रेजरपे पेमेंट गेटवे’ के माध्यम से पैसे स्वीकार किए, जिसके लिए आगे की जांच की आवश्यकता है।

आरोपी की तरफ से पेश अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने अदालत में इस आधार पर जमानत याचिका पेश की कि उनके मुवक्किल से और पूछताछ की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, “मैं (जुबैर) कोई आतंकवादी नहीं हूं कि उन्हें मेरी मौजूदगी सुरक्षित करने की जरूरत है।”

इस मामले में दिल्ली पुलिस को उस वक्त शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा जब उसके उपायुक्त (आईएफएसओ) केपीएस मल्होत्रा को अपनी गलती स्वीकार करनी पड़ी कि उन्होंने दिन में मीडिया से यह गलत सूचना साझा की कि जुबैर को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया है। मल्होत्रा के बयान के बाद तथ्यान्वेषी वेबसाइट के पत्रकार के वकील ने स्पष्ट किया कि न्यायाधीश ने तब तक कोई फैसला नहीं सुनाया था।

देर शाम अदालत के फिर से बैठने के बाद मुख्य मेट्रोपॉलिटिन मजिस्ट्रेट स्निग्धा सरवरिया ने फैसला सुनाया। जमानत याचिका खारिज करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि मामला अभी जांच के शुरुआती चरण में है। इससे पहले दिन में मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश ने दलीलें सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।

दिल्ली पुलिस ने जुबैर की पांच दिन की पुलिस रिमांड शनिवार को खत्म होने पर अदालत से आग्रह किया कि उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा जाना चाहिए, क्योंकि उनसे बाद में हिरासत में पूछताछ की जरूरत पड़ सकती है।

न्यायाधीश ने अपने आठ पन्नों के आदेश में कहा, “चूंकि मामला जांच के प्रारंभिक चरण में है और मामले के समग्र तथ्य और परिस्थितियां तथा आरोपी के खिलाफ कथित अपराधों की प्रकृति और गंभीरता के मद्देनजर, जमानत देने का कोई आधार नहीं है। इसे ध्यान में रखते हुए आरोपी की जमानत अर्जी खारिज की जाती है और आरोपी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है।”

न्यायाधीश ने जमानत अर्जी खारिज करते हुए जांच के दौरान नई धाराएं जोड़े जाने को भी संज्ञान में लिया।

इस दलील पर कि लैपटॉप और मोबाइल फोन की जब्ती अवैध थी और आरोपी की गोपनीयता को प्रभावित कर रही थी, अदालत ने कहा कि यह पुलिस की फाइल का हिस्सा था कि आरोपी के पास से शुरुआत में 27 जून को जब्त किए गए मोबाइल फोन में कोई डेटा नहीं था।

आरोपी के इस दावे पर कि उसका पुराना मोबाइल चोरी हो गया था, अदालत ने कहा, “रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं मिला जो यह दर्शाता हो कि आरोपी का कोई मोबाइल फोन खो गया है, हालांकि उक्त बातें वर्तमान अर्जी में अब ले ली गई हैं।”

अदालत ने आगे कहा कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को सील करने के बारे में आरोपी की चिंताओं को मौजूदा चरण में दूर नहीं किया जा सकता है क्योंकि डेटा के संबंध में जांच शुरुआती दौर में है और तलाशी वारंट के तामील के दौरान जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर अभी विचार किया जा रहा है।

अदालत ने कहा, “जहां तक अर्जी की बात है, जिसमें दावा किया गया है कि जिस कथित ट्वीट के लिए आरोपी को गिरफ्तार किया गया है, वह 2018 का है और हिंदी फिल्म ‘किसी से ना कहना’ का हिस्सा है और इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए (धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, निवास स्थान, आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देना), 295ए (किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान कर उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य करने) का मामला नहीं बनता है। हालांकि, यह दलील आरोपी के लिए किसी तरह से मददगार नहीं है, क्योंकि एफसीआरए अधिनियम की धारा 35 (के किसी प्रावधान के उल्लंघन के लिए सजा) भी जोड़ी गई है और जांच लंबित है।”

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