देश की खबरें | सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों के खिलाफ
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नयी दिल्ली, 17 जून केंद्र की ‘अग्निपथ’ सैन्य भर्ती योजना के खिलाफ कई राज्यों में व्यापक हिंसक विरोध और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान कानूनी सिद्धांतों के मूल और इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए विभिन्न निर्णयों में उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित निर्देशों के खिलाफ है।
अतीत में, शीर्ष अदालत ने निजी व्यक्तियों के हिंसक विरोध और प्रदर्शनों में "निराशाजनक वृद्धि" संबंधी ऐसी घटनाओं में लिप्त लोगों के साथ सख्ती से निपटने का काम किया तथा यह भी देखा कि "किसी को भी कानून का स्वयंभू संरक्षक बनने का अधिकार नहीं है और न ही कोई दूसरों पर कानून की अपनी व्याख्या जबरन थोप सकता है।’’
शीर्ष अदालत द्वारा मुद्दे पर अग्रसक्रिय ढंग से काम किए जाने के बाद पिछले कुछ वर्षों में, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले हिंसक विरोध प्रदर्शनों में शामिल संगठनों के नेताओं पर मुकदमा चलाने, इस तरह की घटनाओं पर उच्च न्यायालयों से स्वत: संज्ञान लेने के लिए कहने और पीड़ितों को मुआवजा देने जैसे कई महत्वपूर्ण निर्देश देखे गए हैं।
हाल के वर्षों में, जब भी सरकारी नीतियों तथा अन्य मुद्दों को लेकर हिंसा की व्यापक घटनाएं हुई हैं, शीर्ष अदालत ने अधिकारियों से उन लोगों पर जवाबदेही तय करने को कहा है जो सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं।
शीर्ष अदालत ने 2007 में व्यापक स्तर पर हिंसा और सार्वजनिक संपत्तियों के नुकसान की घटनाओं पर स्वत: संज्ञान लिया और सिफारिशें देने के लिए दो समितियों का गठन किया।
न्यायालय ने 16 अप्रैल, 2009 को न्यायमूर्ति के टी थॉमस, शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, और प्रसिद्ध न्यायविद एफएस नरीमन के नेतृत्व वाली दो समितियों की सिफारिशों पर ध्यान दिया और कहा कि सुझाव अत्यंत महत्वपूर्ण हैं तथा वे पर्याप्त दिशा-निर्देश देने वाले हैं जिन्हें अपनाए जाने की अवश्यकता है।
शीर्ष अदालत ने नरीमन समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था जिनमें कहा गया था कि "जहां भी विरोध या उसके कारण संपत्ति का सामूहिक नुकसान हो, उच्च न्यायालय स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई जारी कर सकता है और नुकसान की जांच के लिए मशीनरी स्थापित कर सकता है तथा मुआवजे का निर्देश दे सकता है।
इसने कहा था कि जहां एक से अधिक राज्य शामिल हों; वहां इस तरह की कार्रवाई उच्चतम न्यायालय कर सकता है।
वर्ष 2018 में शीर्ष अदालत ने कहा था कि किसी को भी कानून का "स्व-नियुक्त अभिभावक" बनने का अधिकार नहीं है क्योंकि भीड़ की हिंसा कानूनी सिद्धांतों के मूल के खिलाफ चलती है।
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