COVID-19 Vaccination: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- डिजिटल खाई के कारण वंचित तबके को झेलना होगा नुकसान

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि 18 से 44 साल के उम्र के लोगों के लिए डिजिटल पोर्टल ‘को-विन’ पर पूरी तरह आश्रित टीकाकरण नीति ‘‘डिजिटल खाई’’ के कारण सार्वभौमिक टीकाकरण के अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगी और समाज के वंचित वर्ग को ‘‘पहुंच में अवरोध’’ का नुकसान झेलना होगा. शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह की नीति समानता के मौलिक अधिकार और 18 से 44 वर्ष के उम्र समूह के लोगों के स्वास्थ्य के अधिकार पर गंभीर असर डालेगी.

प्रतिकात्मक तस्वीर (Photo Credits ANI)

नयी दिल्ली, दो जून. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा है कि 18 से 44 साल के उम्र के लोगों के लिए डिजिटल पोर्टल ‘को-विन’ (CoWIN) पर पूरी तरह आश्रित टीकाकरण नीति (Vaccination Policy) ‘‘डिजिटल खाई’’ (Digital Divide) के कारण सार्वभौमिक टीकाकरण (Universal Immunization) के अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगी और समाज के वंचित वर्ग (Marginalised Sections) को ‘‘पहुंच में अवरोध’’ का नुकसान झेलना होगा. शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह की नीति समानता के मौलिक अधिकार और 18 से 44 वर्ष के उम्र समूह के लोगों के स्वास्थ्य के अधिकार पर गंभीर असर डालेगी. शीर्ष अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि डिजिटल रूप से शिक्षित लोगों को भी को-विन पोर्टल के जरिए टीकाकरण स्लॉट (Vaccination Slots) पाने में मुश्किलें आ रही हैं. न्यायालय ने केंद्र से पूछा है कि क्या उसने को-विन वेबसाइट की पहुंच और आरोग्य सेतु (Aarogya Setu) जैसे ऐप का ऑडिट किया है कि दिव्यांग लोगों की कैसे उन तक पहुंच हो. न्यायालय ने कहा कि उसके संज्ञान में आया है कि को-विन प्लेटफॉर्म तक दृष्टिबाधित लोगों की पहुंच नहीं है और वेबसाइट तक पहुंच में कई अवरोधक हैं. यह भी पढ़ें- बच्चों को कोविड से बचाने के लिए जल्द जारी होगी गाइडलाइन, उससे पहले स्वास्थ्य विशेषज्ञ की इन बातों का रखें ध्यान.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ ने इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा 2019-20 के लिए कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) की वार्षिक रिपोर्ट और भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण की एक रिपोर्ट तथा राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच कराए गए एक सर्वेक्षण ‘‘घरेलू सामाजिक उपभोग : शिक्षा’ का भी हवाला दिया. पीठ ने कहा, ‘‘उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत में खासकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच डिजिटल खाई है. डिजिटल साक्षरता और डिजिटल पहुंच में सुधार की दिशा में जो प्रगति हुई है, वह देश की बहुसंख्यक आबादी तक नहीं पहुंच पाई है. बैंडविड्थ और कनेक्टिविटी की उपलब्धता डिजिटल पहुंच के लिए और चुनौतियां पेश करते हैं.’’

पीठ में न्यायमूर्ति एल एन राव और न्यायमूर्ति एस आर भट भी थे. पीठ ने कोविड-19 महामारी के दौरान आवश्यक सेवाओं और आपूर्ति के स्वत: संज्ञान लिए गए मामले पर 31 मई के आदेश में यह टिप्पणी की थी. आदेश को बुधवार को शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया गया.

पीठ ने कहा, ‘‘इस देश की महत्वपूर्ण आबादी 18-44 साल के उम्र के लोगों के टीकाकरण के लिए पूरी तरह डिजिटल पोर्टल पर आधारित टीकाकरण नीति ऐसी डिजिटल खाई के कारण सार्वभौमिक टीकाकरण के लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पएगी. पहुंच में अवरोध का सबसे नुकसान समाज के वंचित तबके को उठाना पड़ेगा.’’ पीठ ने कोविड-19 टीका हासिल करने में समाज के वंचित सदस्यों की क्षमता संबंधी चुनौतियों को रेखांकित करते हुए 30 अप्रैल के आदेश में यह टिप्पणी की थी.

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