देश की खबरें | अदालत को यह पता लगाना जरूरी कि मृत्यु से पहले की गयी घोषणा विश्वसनीय है या नहीं: न्यायालय
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि किसी व्यक्ति को हत्या के मामले में दोषी करार देने के लिए मृतक का अंतिम घोषणापत्र एकमात्र आधार हो सकता है और किसी भी अदालत को इस बात का पता लगाना चाहिए कि यह सच और प्रामाणिक है या नहीं।
नयी दिल्ली, 16 अगस्त उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि किसी व्यक्ति को हत्या के मामले में दोषी करार देने के लिए मृतक का अंतिम घोषणापत्र एकमात्र आधार हो सकता है और किसी भी अदालत को इस बात का पता लगाना चाहिए कि यह सच और प्रामाणिक है या नहीं।
उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी अदालत को इस बात का पता लगाना चाहिए कि मृत्यु से पहले की गयी घोषणा ऐसे समय की गयी है जब मृतक शारीरिक और मानसिक रूप से घोषणा करने के लिए स्वस्थ था या थी और किसी के दबाव में नहीं था या नहीं थी।
उसने कहा कि अगर मरने से पहले के कई घोषणापत्र हैं और उनमें विसंगतियां हैं तो किसी मजिस्ट्रेट सरीखे उच्च अधिकारी द्वारा रिकॉर्ड किये गये घोषणापत्र पर भरोसा किया जा सकता है।
हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि इसके साथ शर्त है कि ऐसी कोई परिस्थिति नहीं हो जो इसकी सचाई को लेकर संदेह को बढ़ावा दे रही हो।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति पी एस नरसिंहा की पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी (दहेज के मामले में मृत्यु) के तहत दोषी करार दिये गये एक व्यक्ति को बरी करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
पीठ ने कहा, ‘‘अदालत को यह जांचना जरूरी है कि मृत्यु से पहले की गयी घोषणा सच और प्रामाणिक है या नहीं, इसे किसी व्यक्ति द्वारा उस समय दर्ज किया गया या नहीं जब मृतक घोषणा करते समय शारीरिक और मानसिक रूप से तंदुरुस्त हो, इसे किसी के सिखाने या उकसाने या दबाव में तो नहीं दिया गया।’’
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