देश की खबरें | बंबई उच्च न्यायालय झुग्गी पुनर्विकास पर महाराष्ट्र कानून के प्रभाव की समीक्षा करे: शीर्ष अदालत

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में बंबई उच्च न्यायालय को झुग्गी पुनर्विकास पर 1971 के महाराष्ट्र कानून के प्रभाव की समीक्षा करने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय में 1,600 से अधिक मामले लंबित हैं और गरीबों के लिए कल्याणकारी कानून अधर में लटके हुए हैं।

नयी दिल्ली, 31 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में बंबई उच्च न्यायालय को झुग्गी पुनर्विकास पर 1971 के महाराष्ट्र कानून के प्रभाव की समीक्षा करने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय में 1,600 से अधिक मामले लंबित हैं और गरीबों के लिए कल्याणकारी कानून अधर में लटके हुए हैं।

उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से महाराष्ट्र स्लम क्षेत्र (सुधार, निकासी और पुनर्विकास) अधिनियम, 1971 के क्रियान्वयन में आने वाली समस्याओं की पहचान करने के लिए इसकी कार्यप्रणाली की समीक्षा करने के लिए ‘‘स्वतः कार्यवाही शुरू करने’’ के लिए एक पीठ गठित करने को कहा।

न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने मंगलवार को कहा, ‘‘कार्यपालिका का यह संवैधानिक कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि किसी कानून का उद्देश्य और लक्ष्य उसे लागू करते समय पूरा हो। इसका यह भी कर्तव्य है कि वह कानून के क्रियान्वयन पर बारीकी से निगरानी रखे और कानून के प्रभाव का निरंतर और वास्तविक समय पर आकलन करे।’’

पीठ ने कहा कि न्यायपालिका को एक और भूमिका निभानी है और वह है न्याय तक पहुंच को सुगम बनाना तथा संवैधानिक निकायों का प्रभावी कामकाज सुनिश्चित करना।

इसने कहा, ‘‘इस भूमिका में न्यायपालिका कार्यपालिका और विधायी कार्यों की समीक्षा नहीं करती है, बल्कि केवल प्रणालीगत सुधारों को बढ़ावा देती है और गति प्रदान करती है।’’

उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ ‘यश डेवलपर्स’ की अपील को खारिज करते हुए ये निर्देश जारी किए गए।

उच्च न्यायालय ने 2003 में मुंबई के बोरीवली क्षेत्र में झुग्गी-झोंपड़ी विकसित करने के लिए रियल एस्टेट फर्म के पक्ष में प्रदत्त झुग्गी-झोंपड़ी पुनर्विकास परियोजना को रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा था।

पीठ ने कहा कि कार्यपालिका का यह संवैधानिक कर्तव्य है कि वह कानून के क्रियान्वयन के दौरान यह सुनिश्चित करे कि कानून का उद्देश्य और लक्ष्य पूरा हो।

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