जरुरी जानकारी | अगले वित्त वर्ष में बैंकों की लाभप्रदता पर असर पड़ने की आशंका : इंडिया रेटिंग्स

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on Information at LatestLY हिन्दी. इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने मंगलवार को कहा कि खराब परिसंपत्तियों में वृद्धि से अगले वित्त वर्ष में बैंकों की लाभप्रदता पर असर पड़ने की आशंका है।

मुंबई, सात जनवरी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने मंगलवार को कहा कि खराब परिसंपत्तियों में वृद्धि से अगले वित्त वर्ष में बैंकों की लाभप्रदता पर असर पड़ने की आशंका है।

घरेलू रेटिंग एजेंसी ने कहा कि भारतीय बैंकों की लाभप्रदता वित्त वर्ष 2024-25 में ‘घुमाव बिंदु’ पर है और अगले वित्त वर्ष में इसमें और कमी आने की संभावना है। उसने कहा कि वित्त वर्ष 2023-24 मुनाफे के लिहाज से बैंकों के लिए चरम का साल था।

रेटिंग एजेंसी के प्रमुख और निदेशक (वित्तीय संस्थान) करण गुप्ता ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘वित्त वर्ष 2025-26 में बैंकों की लाभप्रदता में और कमी आने की आशंका है। इसकी वजह यह है कि वित्त वर्ष 2023-24 के स्तर पर कर्ज चूक बढ़ने और ऋण लागत में वृद्धि की उम्मीद है जो दशक के निचले स्तर पर था।’’

गुप्ता ने कहा कि परिसंपत्ति गुणवत्ता दबाव का एक बड़ा हिस्सा बिना गारंटी वाले खुदरा कर्ज जोखिम से उत्पन्न होगा। हालांकि, उन्होंने कहा कि इसे संभाला जा सकता है और इसका कोई प्रणालीगत प्रभाव नहीं होगा।

एजेंसी ने कहा कि 50,000 रुपये से कम के खुदरा असुरक्षित कर्ज में बैंकिंग ऋण का लगभग 0.4 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि केवल 3.6 प्रतिशत कर्ज ऐसे हैं जिनकी उधारी दर 11 प्रतिशत से अधिक है।

रेटिंग एजेंसी ने ऋण वृद्धि की गति सुस्त होने का जिक्र करते हुए वित्त वर्ष 2024-25 के प्रणालीगत ऋण वृद्धि अनुमान को 15 प्रतिशत से घटाकर 13-13.5 प्रतिशत कर दिया। उसने अगले वित्त वर्ष में मुख्य ब्याज आय प्रभावित होने की आशंका भी जताई।

एजेंसी ने कहा कि अगले वित्त वर्ष में पिछली बढ़ोतरी, कर्ज चूक बढ़ने और लेखांकन नीतियों में बदलाव के कारण बैंकों का शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) 0.10 प्रतिशत कम हो जाएगा। इसके अलावा ऋण और जमा वृद्धि के बीच का अंतर भी कम होने का अनुमान है।

इंडिया रेटिंग्स एंड एजेंसी ने बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और आवास वित्त कंपनियों पर अपनी रेटिंग एवं नजरिये को बनाए रखा है लेकिन दबाव बढ़ने की आशंकाओं को देखते हुए कुछ परिसंपत्ति खंडों पर अपना नजरिया बदला है।

गुप्ता ने कहा कि परिसंपत्ति गुणवत्ता संबंधी चिंताओं के कारण व्यक्तिगत ऋण, बिना गारंटी वाले व्यावसायिक ऋण और सूक्ष्म-वित्त पर दृष्टिकोण को ‘स्थिर’ से घटाकर ‘बिगड़ता हुआ’ कर दिया गया है।

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