देश की खबरें | सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने से पहले तक अटल की लखनऊ से वाबस्तगी बनी रही

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(मनीष चंद्र पांडेय)

लखनऊ, 25 दिसंबर लखनऊ शहर बुधवार को अटल बिहारी वाजपेयी के पोस्टरों और होर्डिंग्स से भर गया, जिन्होंने रिकॉर्ड पांच बार लगातार लोकसभा में इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था।

साल 2004 में लोकसभा चुनाव के फौरन बाद सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने से पहले तक उनकी लखनऊ से वाबस्तगी बनी रही।

वाजपेयी को अपना गुरु मानने वाले लखनऊ के मौजूदा सांसद और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर पूर्व सांसद लालजी टंडन समेत अनेक भाजपा नेताओं ने चुनावों के दौरान और उसके बाद अपने भाषणों में जनता से जुड़ने के लिए 'अटल जी' का जिक्र किया।

दरअसल टंडन ने जब साल 2009 में लखनऊ से लोकसभा चुनाव लड़ा था तो वाजपेयी की ‘खड़ाऊ (जूते)’ और वाजपेयी की अपील के साथ प्रचार किया था और लखनऊ वासियों ने इसका पूरा मान रखते हुए टंडन को लोकसभा भेजा था।

टंडन ने इस संवाददाता को बताया था, ''अटल जी के बिना लखनऊ की कल्पना करना मुश्किल था। चूंकि वे अपनी बीमारी के कारण लखनऊ नहीं आ सकते थे इसलिए मैंने उनकी ‘खड़ाऊ’ लेने का फैसला किया।''

लोकसभा चुनाव जीतने के बाद टंडन ने अपनी लखनऊ (पश्चिम) विधानसभा सीट खाली कर दी थी और उपचुनाव में भाजपा नेता अमित पुरी भी बीमार वाजपेयी से मिलने दिल्ली गए थे और उनके प्रति अपने समर्थन के सुबूत के तौर पर उनके ‘कुर्ते’ लेकर लौटे थे।

उन्होंने ‘वाजपेयी के कुर्ते’ दिखाते हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की थी!

मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह जैसे शीर्ष नौकरशाहों ने भी वाजपेयी की जन्म शताब्दी समारोह के दौरान उन्हें याद किया और यह याद भी दिलाया कि कैसे पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी विवादास्पद मुद्दों को सुलझाने के लिए बातचीत में विश्वास करते थे।

सिंह ने वाजपेयी के शताब्दी समारोह में कहा, ''वे अक्सर कहा करते थे कि न बंदूक से न गोली से, बात बनेगी बोली से।’’

उन्हें अक्सर भारतीय राजनीति का ‘अजातशत्रु’ कहा जाता था जिसका कोई दुश्मन नहीं था।

उत्तर प्रदेश की राजधानी अटल की यादों से भरी पड़ी है। लोक भवन में उनकी 25 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा से लेकर हजरतगंज के मुख्य चौराहे 'अटल चौक' तक लखनऊ में लगभग हर चीज अटल की यादों से गूंजती है। बुधवार को लखनऊ के पुराने शहर में एक और अटल प्रतिमा का अनावरण किया गया।

वाजपेयी की 100वीं जयंती पर बुधवार को लखनऊ उनके पोस्टरों और होर्डिंग्स से पटा हुआ था। मुस्लिम समाज के कई लोग भी उस समय को याद कर रहे थे जब वे भाजपा के खिलाफ आपत्तियों के बावजूद वाजपेयी को वोट देते थे।

लखनऊ में कई साहित्यिक महफिलों के प्रमुख आयोजक रहे अतहर नबी ने मुसलमानों का एक 'अटल फैन क्लब' भी बनाया था, जो मुस्लिम बहुल इलाकों में वाजपेयी के लिए समर्थन मांगने के लिए घर-घर जाते थे। फैन क्लब में प्रमुख कवि भी शामिल थे।

लखनऊ के एक प्रमुख कवि सर्वेश अस्थाना ने 'पीटीआई-' को बताया, ''मुझे याद है कि उस समय के प्रमुख उर्दू कवियों ने अटल जी के लिए प्रचार किया था। उनकी अपील ने सभी बाधाओं को तोड़ डाला था और माहौल वाजपेयी के पक्ष में कर दिया था।''

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