देश की खबरें | अनुच्छेद 370 पर संविधान की भावनात्मक बहुसंख्यकवादी व्याख्या नहीं की जाए: न्यायालय से कहा गया

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. नेशनल कांफ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि अनुच्छेद 370 हटाने का समर्थन कर रहे लोगों की ओर से भारतीय संविधान की ‘भावनात्मक बहुसंख्यकवादी व्याख्या’ नहीं होनी चाहिए।

नयी दिल्ली, चार सितंबर नेशनल कांफ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि अनुच्छेद 370 हटाने का समर्थन कर रहे लोगों की ओर से भारतीय संविधान की ‘भावनात्मक बहुसंख्यकवादी व्याख्या’ नहीं होनी चाहिए।

उन्होंने इसके पीछे यह दलील दी कि भारत से जम्मू कश्मीर ना तो पूरी तरह से जुड़ा हुआ है, ना ही अन्य रजवाड़ों की तरह विलय के समझौते पर हस्ताक्षर किया था।

लोन की ओर से न्यायालय में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा कि भारत की संप्रभुता को कभी चुनौती नहीं दी गई है।

संविधान पीठ ने अनुच्छेद 370 के प्रावधान निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 15वें दिन सुनवाई की।

सिब्बल ने कहा कि लोन और अन्य याचिकाकार्ताओं ने केंद्र के उस निर्णय को चुनौती दी है, जिसके तहत वह जम्मू कश्मीर को भारत का अखंड हिस्सा बताता रहा है।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘‘हम इस मामले को संविधान की भावनात्मक बहुसंख्यकवादी व्याख्या में तब्दील नहीं कर सकते। यदि हम इतिहास पर नजर डालें, तो यह देखने को मिलेगा कि जम्मू-कश्मीर पूरी तरह से भारत से जुड़ा नहीं है। पूर्ववर्ती राज्य का एक अलग विस्तृत संविधान और प्रशासनिक संरचना थी। कभी भी विलय समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए नहीं कहा गया।''

पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल हैं।

सिब्बल ने पीठ से कहा कि जब अनुच्छेद 370 कहता है कि कुछ विषयों के संबंध में राज्य सरकार की 'सहमति' आवश्यक है, तब इसका यह मतलब होता है कि वह 'ना' भी कह सकती है।

प्रधान न्यायाधीश ने सिब्बल से कहा कि भारतीय संविधान यह नहीं कहता है कि जम्मू कश्मीर का संविधान लागू होने के बाद क्या होगा।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा,‘‘आप देख सकते हैं, कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। इस पर पूरी तरह से चुप्पी है कि जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू होने के बाद क्या होगा। यह अनुच्छेद 370 को लागू करने की अनुमति देने और (जम्मू-कश्मीर के) एकीकरण की प्रक्रिया को समाप्त होने देने जैसा था। लेकिन भारत के संविधान में यह नहीं बताया गया है कि एकीकरण किस समय खत्म होगा।''

सिब्बल ने अपनी यह दलील दोहराई कि राज्य के संविधान का मसौदा तैयार होने के बाद, अनुच्छेद 370 ने जम्मू कश्मीर की संविधान सभा का कार्यकाल 1957 में समाप्त होने पर एक स्थायी रूप ले लिया।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें संविधान की शब्दश: और संदर्भ के साथ व्याख्या करनी चाहिए।’’

सिबबल ने कहा कि अनुच्छेद 370 हटाना एक राजनीतिक प्रक्रिया है और इसका अवश्य ही एक राजनीतिक समाधान होना चाहिए।

सिब्बल की दलीलें पूरी नहीं हुईं और यह मंगलवार को भी जारी रहेंगी।

इससे पहले दिन में, शीर्ष न्यायालय ने हस्तक्षेपकर्ताओं की दलीलें सुनी, जो अनुच्छेद 370 निरस्त करने के केंद्र के पांच अगस्त 2019 के फैसले का बचाव कर रहे हैं।

पीठ ने स्पष्ट कर दिया कि अनुच्छेद 370 पर दलीलें सुनने के लिए मंगलवार आखिरी दिन होगा।

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