मास्को: भारत में AK-203 रायफल बनाने के लिए रूस के साथ एक बड़े समझौते को दिया गया अंतिम रूप
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की यहां की यात्रा के दौरान भारत और रूस ने अत्याधुनिक एके-203 रायफल भारत में बनाने के लिये एक बड़े समझौते को अंतिम रूप दे दिया है. आधिकारिक रूसी मीडिया ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी. एके-203 रायफल, एके-47 रायफल का नवीनतम और सर्वाधिक उन्नत प्रारूप है.
मास्को, 4 सितंबर: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) की यहां की यात्रा के दौरान भारत और रूस ने अत्याधुनिक एके-203 रायफल भारत में बनाने के लिये एक बड़े समझौते को अंतिम रूप दे दिया है. आधिकारिक रूसी मीडिया ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी. एके-203 रायफल, एके-47 रायफल का नवीनतम और सर्वाधिक उन्नत प्रारूप है. यह ‘इंडियन स्मॉल ऑर्म्स सिस्टम’ (इनसास) 5.56x45 मिमी रायफल की जगह लेगा.
रूस की सरकारी समाचार एजेंसी ‘स्पुतनिक’ के मुताबिक भारतीय थलसेना को लगभग 7,70,000 एके-203 रायफलों की जरूरत है, जिनमें से 100,000 का आयात किया जाएगा और शेष का विनिर्मिण भारत में किया जाएगा. रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘‘दोनों पक्षों ने एके 203 रायफल के उत्पादन के लिये भारत-रूस संयुक्त उद्यम की भारत में स्थापना को लेकर अंतिम चरण की चर्चा का स्वागत किया है."
बयान में कहा गया है कि यह 'मेक-इन-इंडिया' कार्यक्रम में रूसी रक्षा उद्योग को शामिल करने के लिए बहुत ही सकारात्मक आधार प्रदान करता है. बयान में कहा गया है कि रूसी रक्षा मंत्री जनरल सर्गेई शोइगू ने मेक इन इंडिया कार्यक्रम को सफल बनाने में सक्रियता से शामिल होने की रूसी पक्ष की प्रतिबद्धता को दोहराया. इसने कहा कि इन रायफलों को भारत में संयुक्त उद्यम भारत-रूस रायफल प्राइवेट लिमिटेड (आईआरआरपीएल) के तहत बनाया जाएगा.
इसकी स्थापना आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) और कलाशनीकोव कंसर्न तथा रोसोबोरेनेक्सपोर्ट के बीच हुई है. खबर के मुताबिक, ओएफबी की आईआरआरपीएल में 50.5 प्रतिशत अंशधारिता होगी, जबकि कलाशनीकोव समूह की 42 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी. रूस की सैन्य निर्यात के लिए सरकारी एजेंसी रोसोबोरेनेक्सपोर्ट की शेष 7.5 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी. खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश में कोरवा आयुध फैक्टरी में 7.62×39 मिमी के इस रूसी हथियार का उत्पादन किया जाएगा, जिसका उदघाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल किया था.
खबर के मुताबिक प्रति रायफल करीब 1,100 डॉलर की लागत आने की उम्मीद है, जिसमें प्रौद्योगिकी हस्तांतरण लागत और विनिर्माण इकाई की स्थापना भी शामिल है. ‘स्पुतनिक’ की खबर के मुताबिक इनसास रायफलों का इस्तेमाल 1996 से किया जा रहा है. उसमें जाम होने, हिमालय पर्वत पर अधिक ऊंचे स्थानों पर मैगजीन में समस्या आने जैसी परेशानियां पेश आ रही हैं.
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