नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि भारतीय जासूस के तौर पर पाकिस्तान की जेल में 14 साल बिताने का दावा करने वाले शख्स को केंद्र सरकार 10 लाख रुपये दे. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित और न्यायमूर्ति रवींद्र भट. याचिका राजस्थान के रहने वाले महमूद अंसारी नाम के एक शख्स की थी. Attorney General For India: मुकुल रोहतगी होंगे भारत के अगले अटॉर्नी जनरल, 30 सितंबर को खत्म हो रहा वेणुगोपाल का कार्यकाल
याचिकाकर्ता का मामला यह था कि उन्हें 1966 में डाक विभाग में नियुक्त किया गया था. 1972 में, उन्हें भारत सरकार के विशेष ब्यूरो ऑफ इंटेलिजेंस से राष्ट्र के प्रति अपनी सेवाएं प्रदान करने का प्रस्ताव मिला, जिसके अनुसार उन्हें गुप्त रूप से पाकिस्तान में प्रतिनियुक्त किया गया था.
उन्होंने सौंपे गए काम को दो बार पूरा किया, लेकिन तीसरे अवसर पर जब उसे पाकिस्तान भेजा गया, तो दुर्भाग्य से उसे पाकिस्तानी रेंजरों ने रोक लिया और 23/12/1976 को पाकिस्तानी अधिकारियों ने जासूसी गतिविधियों के लिए उन्हे गिरफ्तार कर लिया.
याचिकाकर्ता का यह मामला था कि उक्त गिरफ्तारी के अनुसरण में, उनका कोर्ट मार्शल किया गया और आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 (पाकिस्तान के) की धारा 3 के तहत मुकदमा चलाया गया. इसके बाद उन्हें 14 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई.
1989 में पाकिस्तान जेल से उन्हे रिहा किया गया. इसके बाद अपनी सेवाओं को फिर से शुरू करने के लिए उन्होंने अधिकारियों से संपर्क किया, तो उन्हें सूचित किया गया कि उनकी सेवाओं को 31/7/1980 को समाप्त कर दिया गया था, जिसे वह समय पर चुनौती नहीं दे सके.
साल 2000 में, प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने बहाली और बैकवेज़ के लिए उनकी याचिका को खारिज कर दिया. 2017 में, राजस्थान उच्च न्यायालय ने भी लंबी देरी और अधिकार क्षेत्र की कमी का हवाला देते हुए उनकी याचिका को खारिज कर दिया. इसके बाद याचिकाकर्ता ने 2018 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.