Surda Copper Mine: चार साल से बंद देश की सबसे पुरानी सुरदा तांबा खदान में फिर से शुरू होगा उत्पादन, केंद्र की हरी झंडी

देश में हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) की सबसे पुरानी तांबा खदानों में से एक झारखंड के मुसाबनी स्थित सुरदा माइंस की चमक एक बार फिर लौटने वाली है. भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि के लीज के लिए क्लीयरेंस दे दी है.

PM Narendra Modi (Photo Credit: ANI)

Surda Copper Mine:  देश में हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) की सबसे पुरानी तांबा खदानों में से एक झारखंड के मुसाबनी स्थित सुरदा माइंस की चमक एक बार फिर लौटने वाली है. भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने माइनिंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 65.52 हेक्टेयर वन भूमि के लीज के लिए क्लीयरेंस दे दी है. माइंस की लीज खत्म होने की वजह से यह एक अप्रैल 2020 से पूरी तरह बंद हो गयी थी और यहां काम करने वाले प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर करीब दो हजार कर्मी बेरोजगार हो गए थे. खदान को पुनः चालू करने के लिए भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के पास लंबे समय से आवेदन लंबित था.  वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव की पहल पर इसे हरी झंडी दे दी गई है. इसके लीज को रिन्यू करने का प्रस्ताव झारखंड सरकार के कैबिनेट ने पहले ही पारित कर दिया था. उम्मीद की जा रही है अगले एक महीने के भीतर इस खदान में उत्पादन फिर से शुरू हो जायेगा. एक अप्रैल 2020 को मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में ताला लग गया था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गयी थी. इससे न सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेकार हो गये थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी.

कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गये. बेकारी और फाकाकशी के चलते कई कामगारों और उनके परिजनों ने दम तोड़ दिया. यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद के लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था. यह पैसा रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक भी खत्म हो गयी. इस खदान को दोबारा चालू कराने के लिए लड़ाई लड़ने वाले स्थानीय झामुमो विधायक रामदास सोरेन का कहना है कि इस बंदी की वजह से पूरे इलाके में हजारों लोगों की रोजी-रोटी छिन गयी थी. बता दें कि पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप ऑफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है. ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था. तब इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आइसीसी) के नाम से जाना जाता था. आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था. मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके की लाइफलाइन माना जाता था. ब्रिटिश कालीन दस्तावेजों के मुताबिक मुसाबनी की खदानों की कमाई से ही एचसीएल की 4 नई इकाइयां राजस्थान के खेतड़ी, गुजरात के झगरिया, मध्यप्रदेश के मलाजखंड और महाराष्ट्र के तलोजा में खोली गयी थीं. मुसाबनी में हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) की कुल 7 खदानें, कंसन्ट्रेशन प्लांट एवं वर्क्स अवस्थित थे.

अलग-अलग वजहों से वर्ष 1995 से खदानों की बंदी का सिलसिला शुरू हुआ. सबसे पहले बादिया माइंस बंद हुई, इसके बाद वर्ष 2003 तक पाथरगोड़ा, केंदाडीह, राखा, चापड़ी, बानालोपा, सुरदा एवं साउथ सुरदा में तांबा की खदानों में ताला लटक गया. काफी जद्दोजहद के बाद इनमें से एकमात्र सुरदा खदान में वर्ष 2007 में दोबारा खनन कार्य शुरू हुआ, लेकिन समय पर लीज को विस्तार न मिलने से यह खदान भी अप्रैल 2020 में बंद हो गयी. चार साल से सुरदा खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को भी लगभग साढ़े चार सौ करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ है. खदान से राज्य सरकार को माइनिंग रायल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फॉरेस्ट रायल्टी, जीएसटी के रूप में जो राजस्व मिलता था, वह फिलहाल ठप है. कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है. एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनायी है. इसके लिए झारखंड सरकार से सीटीओ (कन्सर्न टू ऑपरेट) की मांग की जायेगी. उम्मीद की जा रही है कि इससे आने वाले दिनों में एचसीएल की आर्थिक स्थिति और भी मजबूत होगी तथा रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे.

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