उत्तर प्रदेश में आधे विधायकों के खिलाफ दर्ज हैं आपराधिक मामले

कभी विधायक और सांसद रहे गैंगस्टर अतीक अहमद की पुलिस हिरासत में हत्या के बाद उत्तर प्रदेश में अपराधियों और राजनीति के रिश्ते पर चर्चा हो रही है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

कभी विधायक और सांसद रहे गैंगस्टर अतीक अहमद की पुलिस हिरासत में हत्या के बाद उत्तर प्रदेश में अपराधियों और राजनीति के रिश्ते पर चर्चा हो रही है. विधानसभा में 51 प्रतिशत विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.चुनावी सुधारों के लिए काम करने वाली निजी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने 2022 में हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में जीतने वाले उम्मीदवारों के हलफनामों के आधार पर ये आंकड़े प्रस्तुत किए हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक 403 विधायकों में से 205 यानी 51 प्रतिशत ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों के दर्ज होने की जानकारी दी थी. यही नहीं, 403 में से 158 या 39 प्रतिशत विधायकों के खिलाफ हत्या, हत्या की कोशिश, बलात्कार, अपहरण आदि जैसे गंभीर आपराधिक मामले भी दर्ज हैं.

बीजेपी में 90 दागी विधायक

पांच विधायकों के खिलाफ हत्या के मामले दर्ज थे. इनमें से तीन सपा में और दो बीजेपी में थे. कुल 29 विधायकों के खिलाफ हत्या की कोशिश के मामले दर्ज थे. छह विधायकों के खिलाफ महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज थे, जिनमें से एक के खिलाफ तो बलात्कार का मामला दर्ज था. यह विधायक बीजेपी में है.

गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे विधायकों की संख्या सबसे ज्यादा बीजेपी में पाई गई. बीजेपी में ऐसे 90 विधायक पाए गए, सपा में 48, कांग्रेस में दो और बसपा में एक विधायक पाया गया.

कई विधायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ एक-दो नहीं बल्कि बीसियों मामले दर्ज हैं. एक विधायक ऐसा भी है जिसके खिलाफ 87 मामले दर्ज हैं. ये आंकड़े उस हकीकत को साबित करते हैं जिसके बारे में प्रदेश के राजनेता, मतदाता और समीक्षक अच्छी तरह से परिचित हैं - राजनीति और अपराध का गहरा रिश्ता.

प्रदेश में लंबे समय से राजनीतिक दल गैंगस्टरों को शरण देते आए हैं. 15 अप्रैल की रात पुलिस हिरासत में मारे गए अतीक अहमद की भी ऐसी ही पृष्ठभूमि थी. अहमद गैंगस्टर होने के साथ साथ पांच बार उत्तर प्रदेश विधान सभा का और एक बार लोक सभा का भी सदस्य रहा.

मुठभेड़ राज

उसने 2004 के लोक सभा चुनावों में फूलपुर लोकसभा क्षेत्र से सपा के टिकट पर चुनाव जीता था. उसने 2009 में अपना दल पार्टी के टिकट पर फिर से फूलपुर से ही लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गया. 2014 में उसने एक बार और सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन एक बार फिर हार गया.

2019 में उसे पूर्व बसपा विधायक राजू पाल की हत्या की साजिश में शामिल होने का दोषी पाया गया था. तब से वो जेल में था. उसकी हत्या की रात उसे उत्तर प्रदेश पुलिस रूटीन चेकअप के लिए प्रयागराज के कॉल्विन अस्पताल ले जा रही थी.

इस तरह पुलिस के पहरे में हुई हत्या को संदिग्ध बताया जा रहा है और हत्या की जांच की मांग उठ रही है. सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है जिसमें सुप्रीम कोर्ट के ही किसी सेवानिवृत्त जज के नेतृत्व में एक विशेष समिति द्वारा हत्या की जांच कराए जाने की मांग की गई है.

इतना ही नहीं याचिका में यह भी अपील की गई है कि यह समिति 2017 से अभी तक प्रदेश में हुई सभी 183 मुठभेड़ों की भी जांच करे. उत्तर प्रदेश पुलिस के आला अफसरों ने खुद बताया है कि मार्च 2017 से शुरू हुए योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यकाल में 183 मुठभेड़ हो चुकी हैं.

इन्हीं छह सालों में प्रदेश में 5,046 अपराधी पुलिस की कार्रवाई में घायल होने के बाद गिरफ्तार किए गए. सिर्फ अपराध ही नहीं बल्कि अपराधियों का "सफाया" आदित्यनाथ का चुनावी वादा था और वो अपने कई भाषणों और साक्षात्कारों में इसे दोहरा चुके हैं.

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