Coronavirus: देश में अभी नहीं आई है COVID-19 की सेकेंड वेव
कोरोना वायरस (Photo Credits: Pixabay)

भारत में करोना वायरस से संक्रिमतों के केस तीन लाख से पार पहुंच गए हैं. हांलाकि आईसीएमआर ने कम्यूनिटी ट्रांशमिशन ने इनकार किया है. लेकिन लॉकडाउन खुलने के बाद तेजी से बढ़ते मामलों के साथ दुनिया भर में संक्रमित देशों की लिस्ट में भारत चौथे स्थान पर पहुंच गया है. ऐसे में भारत में अस्पतालों की स्थिति, केस की पीक समय पर जानकारी देते हुए मैक्स हॉस्पिटल के स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञ डा. बलबीर सिंह ने कहा है कि अभी कोरोना की सेकेंड वेव नहीं आयी है. प्रसार भारती से बाचतीत में डॉ. बलबीर सिंह ने कहा कि अभी भारत में फ़र्स्ट वेव का पीक भी नहीं देखा गया है. फ़र्स्ट वेव के पीक के बाद केस कम होने लगते हैं. उसके बाद एक बार फिर जब मामले बढ़ते हैं तो उसे सेकेंड वेव कहते हैं, लेकिन वो फर्स्ट वेव जितना हाई नहीं होता. अभी भारत में शुरूआत ही देखी गई है, जुलाई के पहले या दूसरे सप्ताह में पीक देख सकते हैं. इसलिए ज्यादा सतर्क रहना है. वहीं, दूसरे देशों को देखें तो जहां सेकेंड वेव आई भी तो उसमें बहुत कम मामले रहे.

देश के चार राज्यों महाराष्ट्र, तमिलनाडु, दिल्ली और गुजरात में संक्रमण के केस बढ़ रहे हैं. ऐसे में अस्पतालों के ऊपर कितना दबाव है, और मरीजों को क्या सुविधा दी जा रही इस पर डॉ बलबीर ने कहा कि हमारे देश में अच्छे अस्पताल हैं, अच्छी चिकित्सा सुविधा है. हमारे देश के डॉक्टर विश्व में अच्छे डॉक्टरों में माने जाते हैं. अमेरिका जैसे कई देशों में ज्यादातर डॉक्टर भारतीय ही हैं. इसलिए चिंता न करें कि नर्स नहीं हैं या डॉक्टर नहीं हैं. बात अगर अस्‍पताल में भर्ती करने की हो तो पहले इस बात का ध्यान रखा जाता है कि मरीज की उम्र क्या है. पहले से कोई बीमारी है तो उसे पहले एडमिट किया जाता है. जिनको सांस लेने में परेशानी है, ऑक्सीजन की कमी है, उन्हें पहले लेते हैं. जिन लोगों में बहुत कम लक्षण होते हैं और उम्र ज्यादा नहीं होती, उनका इलाज घर पर ही करते हैं. अब घर पर जिन्हें रखा जा सकता है, ये जानकर कुछ लोग पैनिक हो रहे हैं. घबराएं नहीं घर में लोग अच्छी तरह रिकवर हो रहे हैं.

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हर्ड इम्यूनिटी क्या है:

डॉ. सिंह ने बताया कि भारत में हर्ड इम्यूनिटी कितनी कारगर है। इस पर डॉ बलबीर कहते हैं कि 1918 के समय में कई वायरस ऐसे थे जिनका कोई इलाज नहीं था. जब वायरस बार-बार आता है तो कई बार वायरस को खत्म करने के लिए कोई औजार नहीं होता. उस समय ये सबको संक्रमित करता है. 80 प्रतिशत एसिम्प्टोमेटिक होंगे या कम लक्षण वाले होंगे. कुछ लोग ज्यादा बीमार होंगे, कुछ के लिए वायरस जानलेवा होगा, लेकिन संक्रमित सभी होंगे. अब अगर किसी शहर में 1800 केस हैं, जिनका टेस्ट हुआ है. इससे कहीं ज्यादा एसिम्प्टोमेटिक होंगे जिनका टेस्ट नहीं हुआ है और पता नहीं चलने से उनका इलाज नहीं होता और उनके अंदर बनने वाले एंटीबॉडी वायरस से लड़ते हैं. इस तरह बाहर अगर ऐसे लोग मिलेंगे जो वायरस को फाइट कर रहे हैं, और उनकी इम्‍युनिटी अच्‍छी है, तो वो ज्यादा फैल नहीं पाएगा और धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा.