अरुणाचल प्रदेश में 32 स्थानों के नाम बदल चुका है चीन

भारत ने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश में 11 स्थानों के नाम बदलने पर कहा है कि "मनगढ़ंत" नाम देने की कोशिशों से असलियत नहीं बदलेगी.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

भारत ने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश में 11 स्थानों के नाम बदलने पर कहा है कि "मनगढ़ंत" नाम देने की कोशिशों से असलियत नहीं बदलेगी. चीन ने छह सालों में ऐसा तीसरी बार किया है.चीन ने अरुणाचल प्रदेश में 11 भौगोलिक रचनाओं के चीनी नामों की घोषणा की है. चीन अरुणाचल को तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा 'जांगनान' कहता है और उसे अपना हिस्सा मानता है. प्रदेश को लेकर चीन द्वारा जारी की गई यह तीसरी सूची है.

चीन की सरकार ने इस तरह के छह स्थानों के चीनी नामों की सूची पहली बार 2017 में जारी की थी. फिर 2021 में उसने 15 और स्थानों के चीनी नामों की दूसरी सूची जारी की थी. यानी कुल मिलाकर चीन अभी तक इस तरह अरुणाचल के 32 स्थानों की चीनी नामों की सूची जारी कर चुका है.

नई सूची में दो जमीनी इलाके, दो रिहायशी इलाके, पांच पहाड़ और दो नदियां हैं. चीन के इस कदम को स्पष्ट रूप से ठुकराते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक ट्वीट में लिखा, "अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अपरिहार्य हिस्सा था, है और रहेगा. मनगढ़ंत नाम देने की कोशिशें इस असलियत को नहीं बदल सकतीं."

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक चीन के इस कदम के बाद चीनी नक्शों पर इन स्थानों के नाम अब से तिब्बती भाषा के अलावा चीन की भाषा मैन्डरिन के रोमन अक्षरों (पिनयिन) में भी उपलब्ध होंगे.

उकसाने का कदम

नए नाम देने से ये इलाके चीन के नहीं हो जाएंगे लेकिन इस तरह के कदम को चीन की तरफ से भारत को उकसाने की कोशिश के रूप में देखा जाता है. अरुणाचल को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद पुराना है. चीन प्रदेश में करीब 90,000 वर्ग किलोमीटर को अपने इलाके का हिस्सा बताता है, लेकिन भारत इस दावे को नहीं मानता.

पिछली बार जब चीन ने इस तरह का कदम उठाया था उस समय दलाई लामा अरुणाचल गए थे. माना जाता है कि उस समय यह कदम चीन ने इस यात्रा का विरोध जताने के लिए उठाया था. इस बार जानकार इस कदम को 2020 में लद्दाख की गल्वान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच शुरू हुए गतिरोध की पृष्ठभूमि में देख रहे हैं.

हालांकि दोनों देशों की सेनाओं के बीच गतिरोध लद्दाख के कुछ हिस्सों में बना हुआ है और चीन के इस कदम का लद्दाख से कोई संबंध नहीं है. फिर भी इसे भारत को उकसाने की कोशिश के रूप में देखा तो जा ही रहा है.

कुछ जानकार ऐसे में विदेश मंत्री एस जयशंकर के उस बयान की याद दिला रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन भारत से बड़ी अर्थव्यवस्था है इसलिए भारत को उससे लड़ना नहीं चाहिए.

विपक्ष चीन के कदम और भारत सरकार की चीन के प्रति चुप्पी की आलोचना कर रहा है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि अरुणाचल भारत का अभिन्न अंग था, है और रहेगा लेकिन चीन के लगातार जारी उल्लंघनों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी की वजह से चीन को बढ़ावा मिलता है.

चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि नाम बदलना "पूरी तरह से चीन की सम्प्रभुता के दायरे में" है. मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने बीजिंग में एक प्रेस वार्ता में कहा, "दक्षिणी तिब्बत प्रांत चीनी इलाका है."

(रॉयटर्स से इनपुट के साथ)

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