कोलकाता: लंबित याचिकाओं की संख्या कम करने के लिए कलकत्ता हाई कोर्ट ने दिया मध्यस्थता पर जोर
कलकत्ता उच्च न्यायालय में लंबित 2.29 लाख याचिकाओं को देखते हुए अदालत विवाद सुलझाने के लिए याचिकाकर्ताओं को मध्यस्थता जैसी प्रक्रिया का सहारा लेने के लिए प्रेरित कर रही है ताकि लंबित पड़ी याचिकाओं में कमी आए. टंडन ने विवाद सुलझाने में मध्यस्थता को प्रभावी विकल्प बताते हुए मीडिया कर्मियों से कहा कि अदालत बड़ी संख्या में लंबित मामलों की सुनवाई में समस्याओं का सामना कर रही हैं.
कोलकाता: कलकत्ता उच्च न्यायालय (Calcutta High Court) में लंबित 2.29 लाख याचिकाओं को देखते हुए अदालत विवाद सुलझाने के लिए याचिकाकर्ताओं को मध्यस्थता जैसी प्रक्रिया का सहारा लेने के लिए प्रेरित कर रही है ताकि लंबित पड़ी याचिकाओं में कमी आए. उच्च न्यायालय (High Court) कारोबार से लेकर विवाह संबंधित मामलों के याचिकाकर्ताओं को इस बात के लिए प्रेरित कर रहा है कि वह अपने मामलों को अदालत में लड़ने के बदले मध्यस्थता का सहारा लें क्योंकि यहां लाखों की संख्या में याचिकाएं लंबित हैं और इनकी सुनवाई में लंबा समय लग सकता है.
कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हरिश टंडन ने कहा कि मध्यस्थता विवादों को सुलझाने के लिए एक प्रभावी माध्यम है क्योंकि इससे दोनों पक्ष अपने मतभेद सुलझा सकते हैं और यह स्थिति दोनों के लिए जीत जैसी होगी.
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टंडन ने विवाद सुलझाने में मध्यस्थता को प्रभावी विकल्प बताते हुए मीडिया कर्मियों से कहा कि अदालत बड़ी संख्या में लंबित मामलों की सुनवाई में समस्याओं का सामना कर रही हैं. कानून में विवादों को सुलझाने के लिए मध्यस्थता प्रक्रिया को कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त है. इसके लिए मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम भले ही 1996 से लागू है लेकिन इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होने की वजह से इस माध्यम का इस्तेमाल ज्यादा नहीं ही होता .