AMU: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा, SC ने नए सिरे से निर्धारण के लिए बनाई 3 जजों की बेंच

नई दिल्ली: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि एएमयू का अल्पसंख्यक का दर्जा बरकरार रहेगा. कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से 1967 के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें AMU को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इनकार किया गया था. साथ ही, कोर्ट ने इस दर्जे को नए सिरे से परिभाषित करने के लिए तीन जजों की एक विशेष बेंच गठित करने का निर्देश दिया.

मुख्य न्यायाधीश (CJI) और जस्टिस पारदीवाला समेत चार जजों ने एकमत होकर इस फैसले का समर्थन किया, जबकि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने इससे असहमति जताई. इस बहुमत निर्णय के अनुसार, AMU को एक अल्पसंख्यक संस्थान माना गया है. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अब तीन जजों की बेंच इस दर्जे की पुष्टि के लिए नए सिरे से मामले की समीक्षा करेगी.

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का विवाद: कैसे हुई इसकी शुरुआत?

AMU की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा एक शिक्षण केंद्र के रूप में की गई थी. 1920 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और नाम बदलकर 'अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी' रखा गया. इस संस्थान को मुस्लिम समुदाय की शैक्षणिक उन्नति के लिए स्थापित किया गया था, परंतु 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक केंद्रीय विश्वविद्यालय माना और अल्पसंख्यक दर्जे से इनकार कर दिया. अदालत ने तर्क दिया कि चूंकि इसे संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता.

अल्पसंख्यक दर्जे का महत्व

AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलने का मतलब है कि यह मुस्लिम समुदाय के नियंत्रण में रह सकता है और अल्पसंख्यक हितों की रक्षा कर सकता है. भारतीय संविधान के तहत, अल्पसंख्यक समुदाय अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और प्रबंधित करने का अधिकार रखते हैं.

इस फैसले के बाद अब तीन जजों की एक विशेष बेंच इस मामले की नए सिरे से समीक्षा करेगी. वे इस पर विचार करेंगे कि क्या AMU का अल्पसंख्यक दर्जा आधुनिक संदर्भ में बरकरार रखा जाना चाहिए या नहीं.