देश की खबरें | ओआरओपी : न्यायालय का सवाल, क्या केंद्र पेंशन में स्वत: वृद्धि के फैसले से पीछे हट गया है
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नयी दिल्ली, 15 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र से सवाल किया कि सशस्त्र बलों में ‘वन रैंक वन पेंशन’ (ओआरओपी) पर सैद्धांतिक रूप से सहमत होने के बाद क्या वह पेंशन में भविष्य में स्वत: वृद्धि के अपने फैसले से पीछे हट गया है।
न्यायालय ने सरकार से यह भी सवाल किया कि क्या वह पांच साल में एक बार आवधिक समीक्षा की मौजूदा नीति के स्थान पर स्वत: वार्षिक संशोधन पर विचार कर सकती है।
न्यायमूर्ति डी. वाई़ चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने ये सवाल केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एन वेंकटरमण से किए। एएसजी ने सात नवंबर, 2015 की अधिसूचना को सही ठहराने का प्रयास किया।
पीठ ने वेंकटरमण से कहा, ‘‘संसद में 2014 में रक्षा मंत्री द्वारा यह घोषणा किए जाने के बाद कि सरकार सैद्धांतिक रूप से ओआरओपी देने के लिए सहमत हो गई है, क्या सरकार किसी भी समय भविष्य में स्वत: वृद्धि करने के अपने निर्णय से पीछे हट गई है...।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी भारतीय भूतपूर्व सैनिक आंदोलन (आईईएसएम) की ओर से पेश हुए। आईईएसएम ने सात नवंबर, 2015 के फैसले को चुनौती दी है। अहमदी ने दलील दी कि यह फैसला मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है क्योंकि यह वर्ग के भीतर वर्ग बनाता है और प्रभावी रूप से एक रैंक को अलग-अलग पेंशन देता है।
एएसजी ने कहा कि सर्वोच्च अदालत के कई फैसले हैं, जिनमें कहा गया है कि संसद में मंत्रियों द्वारा दिए गए बयान कानून नहीं हैं क्योंकि वे लागू करने योग्य नहीं हैं और जहां तक पेंशन में भविष्य में स्वत: वृद्धि का संबंध है, यह किसी भी प्रकार की सेवा में "समझ से परे" है।
उन्होंने कहा कि 2015 का निर्णय, विभिन्न पक्षों, अंतर-मंत्रालयी समूहों के बीच गहन विचार-विमर्श के बाद भारत सरकार द्वारा लिया गया एक नीतिगत निर्णय था।
न्यायालय में दिन भर चली सुनवाई बेनतीजा रही और मामले में सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी।
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