देश की खबरें | मीडिया समूह पर छापेमारी को लेकर आयकर विभाग ने कहा, 2200 करोड़ रुपये के 'फर्जी लेन-देन' को लेकर जांच जारी

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने रविवार को दावा किया कि उसे मीडिया समूह के 2200 करोड़ रुपये के कथित ''फर्जी लेन-देन'' का पता चला है। आयकर विभाग ने इस सप्ताह की शुरुआत में मीडिया समूह दैनिक भास्कर पर छापेमारी की थी।

नयी दिल्ली, 24 जुलाई केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने रविवार को दावा किया कि उसे मीडिया समूह के 2200 करोड़ रुपये के कथित ''फर्जी लेन-देन'' का पता चला है। आयकर विभाग ने इस सप्ताह की शुरुआत में मीडिया समूह दैनिक भास्कर पर छापेमारी की थी।

सीबीडीटी ने कहा कि 22 जुलाई को भोपाल, इंदौर, दिल्ली, अहमदाबाद, नोएडा और कुछ अन्य शहरों में शुरू की गई तलाशी ''अभी जारी है और आगे की जांच प्रगति पर है।'' सीबीडीटी ने एक बयान में कहा, '' तलाशी अभियान के दौरान प्राप्त विशाल सामग्री की पड़ताल की जा रही है।''

सीबीडीटी आयकर विभाग के लिए नीतियां तैयार करता है।

हालांकि, बयान में समूह के नाम का उल्लेख नहीं किया गया है। वहीं, आधिकारिक सूत्रों ने इस समूह की पहचान भोपाल के मुख्यालय वाले दैनिक भास्कर के रूप में की है जोकि मीडिया, ऊर्जा, कपड़ा और रियल एस्टेट जैसे कारोबार करता है।

बयान में आरोप लगाया गया, '' असंबंधित व्यवसायों में लगी इस समूह की कंपनियों के बीच करीब 2,200 करोड़ रुपये के चक्रीय कारोबार और पैसे का लेन-देन पाया गया है। जांच में इस बात की पुष्टि हुई है कि वास्तविक तौर पर सामान की आवाजाही या आपूर्ति के बिना ही फर्जी लेन-देन किया गया। कर प्रभाव एवं अन्य नियमों के उल्लंघन की पड़ताल की जा रही है।''

छापेमारी वाले दिन मीडिया समूह ने अपनी वेबसाइट पर संदेश जारी कर दावा किया था कि सरकार उसकी सच्ची पत्रकारिता से डरी हुई है। दैनिक भास्कर ने अपनी वेबसाइट पर एक संदेश लिखा था, ‘‘मैं स्वतंत्र हूं क्योंकि मैं भास्कर हूं। भास्कर में चलेगी पाठकों की मर्जी।’’

सीबीडीटी ने बयान में आरोप लगाया है कि समूह में उसके स्वामित्व और सहायक कंपनियों सहित 100 से अधिक कंपनियां हैं और वे अपने कर्मचारियों के नाम पर कई कंपनियों का संचालन कर रहे हैं, जिनका उपयोग ''फर्जी'' खर्चों के लिए किया गया है।

बयान में आरोप लगाया गया, '' तलाशी के दौरान, ऐसे कई कर्मचारियों ने यह स्वीकार किया है कि वे ऐसी कंपनियों के बारे में नहीं जानते थे और उन्होंने नियोक्ता को अपने आधार कार्ड और डिजिटल हस्ताक्षर भरोसे पर दिए थे।''

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