देश की खबरें | न्यायिक शक्ति का स्वतंत्र प्रयोग न केवल विशेषाधिकार, बल्कि कर्तव्य भी है : न्यायमूर्ति नागरत्ना

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा है कि न्यायिक शक्ति का स्वतंत्र प्रयोग न केवल न्यायाधीश का विशेषाधिकार है, बल्कि यह उनका कर्तव्य भी है।

चेन्नई, 17 नवंबर उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा है कि न्यायिक शक्ति का स्वतंत्र प्रयोग न केवल न्यायाधीश का विशेषाधिकार है, बल्कि यह उनका कर्तव्य भी है।

उन्होंने कहा कि इसलिए यह जरूरी है कि न्यायाधीश कानून की अपनी समझ और अपनी अंतरात्मा के अनुसार मामलों पर निर्णय लें तथा अन्य विचारों से प्रभावित न हों।

न्यायमूर्ति एस नटराजन शताब्दी स्मृति व्याख्यान में न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि अंततः न्यायाधीशों का दृढ़ विश्वास, साहस और स्वतंत्रता ही अदालत के समक्ष मामलों का फैसला करती है।

उन्होंने कहा, ‘‘अदालत व्यवस्था के भीतर न्यायिक स्वतंत्रता के पहलू से, अलग-अलग राय या असहमतिपूर्ण राय को न्यायाधीशों की पारस्परिक स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए, अर्थात एक न्यायाधीश की अन्य न्यायाधीशों से स्वतंत्रता। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सबसे प्रबुद्ध रूप है।’’

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि उन्होंने और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने संवैधानिक पीठ के मामलों पर असहमति जताई थी। न्यायमूर्ति नागरत्ना का व्याख्यान ‘‘भारतीय संविधान के तहत नियंत्रण और संतुलन पर एक नजर’’ विषय पर था।

उन्होंने यह भी कहा कि केवल एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका ही न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति का प्रभावी ढंग से प्रयोग कर सकती है।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता वह सीमा है, जिस तक एक न्यायाधीश कानून की अपनी व्याख्या के अनुरूप मामलों का फैसला करता है, कभी-कभी, दूसरों की सोच या इच्छा के विपरीत।

न्यायमूर्ति नटराजन (उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश) के बारे में न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि उन्होंने अपने निर्णयों में तथा उन चौदह संविधान पीठों में अपने योगदान के माध्यम से अपनी कानूनी सूझबूझ तथा गहन ज्ञान का प्रदर्शन किया, जिनके वे सदस्य थे।

उन्होंने कहा कि न्याय के साधन के रूप में कानून के प्रति न्यायमूर्ति नटराजन की प्रतिबद्धता तथा संविधान के प्रति सम्मान बेगम सुबानू उर्फ ​​सायरा बानो तथा अन्य बनाम एएम अब्दुल गफूर, (1987) मामले में उनके निर्णय में झलकता है।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

Share Now

\