देश की खबरें | आवधिक समीक्षा पांच वर्ष से कम हो तो क्या पूर्व सैनिकों की कठिनाई दूर हो सकती है: न्यायालय

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नयी दिल्ली, 23 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र से पूछा कि क्या समान रैंक-समान पेंशन (ओआरओपी) की आवधिक समीक्षा को पांच साल से घटाकर कम करने से पूर्व सैनिकों की कठिनाइयों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि वह जो कुछ भी फैसला करेगी, वह तर्क के आधार पर होगा ना कि आंकड़ों पर। पीठ ने ओआरओपी को लेकर केंद्र के फार्मूले के खिलाफ इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमेंट (आईईएसएम) द्वारा दायर एक याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

पीठ ने कहा, ‘‘जब आप पांच साल के बाद समीक्षा करते हैं, तो पांच साल के बकाया को ध्यान में नहीं रखा जाता है। पूर्व सैनिकों की कठिनाइयों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है यदि अवधि को पांच वर्ष से घटाकर कम कर दिया जाए।’’

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘जब हम इस मुद्दे पर फैसला करेंगे, हम आंकड़ों में नहीं जाएंगे बल्कि यह तर्क के आधार पर होगा।’’

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एन वेंकटरमण ने कहा कि जब समीक्षा पांच साल के बाद होती है, तो अधिकतम अंतिम भुगतान वेतन जिसमें सभी कारक होते हैं, को ब्रैकेट में सबसे कम माना जाता है और यह आदर्श स्थिति होती है।

एएसजी ने कहा, ‘‘जब हमने नीति बनाई तो हम नहीं चाहते थे कि आजादी के बाद कोई पीछे छूटे। बराबरी लाई गई। हमने पिछले 60-70 वर्षों को समेटा है। अब अदालत के निर्देश के माध्यम से इसमें संशोधन करने के लिए, इसके पीछे के निहितार्थ हमें पता नहीं है। वित्त और अर्थशास्त्र के साथ कुछ भी सावधानी से विचार करना होगा। पांच साल की अवधि वाजिब है और इसके वित्तीय निहितार्थ भी हैं।’’

आईईएसएम की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हजेफा अहमदी और अधिवक्ता बालाजी श्रीनिवासन ने कहा कि अदालत को यह ध्यान रखना होगा कि यह पूर्व सैनिकों से संबंधित है, जिन्होंने आज के समय में आधुनिक हथियारों से लैस सैनिकों के विपरीत जमीनी लड़ाई लड़ी। उन्होंने कहा, ‘‘पुराने सैनिकों को ओआरओपी की सबसे ज्यादा जरूरत है। अगर हम केंद्र की बात मान लेते हैं तो यह न्याय विरूद्ध चीजों को जारी रहने देने जैसा होगा, जिसे अदालत जड़ से उखाड़ फेंकना चाहती है।’’

वेंकटरमण ने कहा कि याचिकाकर्ता चाहते हैं कि सरकार भविष्य को देखे और पेंशन पर फैसला करे, जो नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘ हमने एश्योर्ड करियर प्रोग्रेसन (एसीपी) और मॉडिफाइड एश्योर्ड करियर प्रोग्रेसन (एमएसीपी) के अंतर को पाट दिया है। नीति निर्माताओं ने अपने विवेक से फैसला किया कि संशोधन पांच साल के बाद होना चाहिए न कि दस साल के बाद।’’

अहमदी ने कहा कि कैलेंडर वर्ष 2013 का निर्धारण और प्रभावी तिथि एक जुलाई 2014 को तय करना भी मनमाना है और इसके परिणामस्वरूप समान रैंक अलग पेंशन होगी तथा 14 दिसंबर 2015 की अधिसूचना द्वारा स्वीकृत नहीं है।

केंद्र ने 21 फरवरी को कहा था कि रक्षा सेवाओं के लिए ओआरओपी की सैद्धांतिक मंजूरी पर बयान तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने 17 फरवरी 2014 को अपने अंतरिम बजट भाषण के दौरान तत्कालीन केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश के बिना दिया था।

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