तालिबान के राज में कैसे खाक हुए औरतों के अधिकार

अफगानिस्तान में औरतों की आजादी खत्म करने की दिशा में एक और हालिया कदम रहा हजारों ब्यूटी पार्लरों को बंद करना.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अफगानिस्तान में औरतों की आजादी खत्म करने की दिशा में एक और हालिया कदम रहा हजारों ब्यूटी पार्लरों को बंद करना. ये उन तमाम फैसलों की एक और कड़ी भर है जो औरतों को घर की चारदीवारी में कैद करने के इरादे से किए गए हैं.तालिबानी आदेश के तहत जुलाई के महीने में अफगानिस्तान में हजारों ब्यूटी पार्लरों के दरवाजें बद कर दिए जाएंगे. सैकड़ों महिलाओं के लिए ये आर्थिक आजादी की एक बची-खुची उम्मीद थी. ये पार्लर ना सिर्फ महिलाओं के लिए रोजी-रोटी कमाने का एक कानूनी जरिया हैं बल्कि उनके लिए ऐसी सुरक्षित जगह भी मुहैया कराते हैं जहां औरतें मिल-बैठकर बातचीत कर सकें. दुनिया का शायद ही कोई और देश होगा जहां अफगानिस्तान की तरह महिला अधिकारों पर यूं हथौड़े चलाए गए हैं. बताया जाता है कि औरतों की जिंदगी जेल से कम नहीं जहां उन्हें खुलकर कहीं आने-जाने या मन का कुछ भी करने का हक नहीं है.

तालिबान ने जारी किया सभी ब्यूटी पार्लर बंद करने का फरमान

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की डिप्टी हाई कमिश्नर नदा अल-नाशिफ ने तालिबान शासन के असर पर जून में कहा, "पिछले 22 महीनों में औरतों और लड़कियों की जिंदगी के हर पहलू पर प्रतिबंध लगाए हैं. उनके साथ हर तरह से भेदभाव हो रहा है". संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि "महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ ढांचागत भेदभाव तालिबान की सोच और शासन के केन्द्र में है."

उच्च शिक्षा से बाहर

अगस्त 2021 में सत्ता पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने लड़कियों को उच्च शिक्षा से बाहर का रास्ता दिखाया. शुरूआत में लड़के-लड़कियों को विश्वविद्यालयों में बिल्कुल अलग-अलग बैठने को कहा. कुछ वक्त तक लड़कियों को सिर्फ महिला शिक्षक या बड़ी उम्र के मर्द ही पढ़ा सकते थे लेकिन बाद में ये भी बंद हो गया. साल 2022 में अफगान शिक्षा मंत्रालय के एक आदेश ने छात्राओं के यूनिवर्सिटी जाने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी.

तालिबान के सत्ता में वापस आने के बाद से 1,000 से अधिक नागरिक मारे गए

यह साफ नहीं है कि कितनी लड़कियां अब पढ़ने से लाचार हैं लेकिन यूनेस्को का एक अनुमान है कि 90,000 तक छात्राओं इससे प्रभावित हो सकती हैं. यह अंदाजा 2018 में विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने वाली छात्राओं की संख्या के आधार पर लगाया गया है. उस वक्त तालिबान ने इस फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि छात्राएं "इस्लामिक कपड़े" जैसे हिजाब पहनकर नहीं जा रही थीं और लड़के-लड़कियों का आपस में मेल-जोल हो रहा है. मीडिया रिपोर्टों की मानें तो छात्राएं अपनी पढ़ाई ऑनलाइन कर रही हैं लेकिन देश में इंटरनेट की बुरी हालत और नौकिरयों की किल्लत को देखते हुए ये शायद ही कोई विकल्प है.

स्वास्थ्य सुविधाओं से महरूम

महिलाओं, बच्चों और माओं के लिए अफगानिस्तान दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से है. हर साल 1000 में से 70 औरतें गर्भावस्था या बच्चे के जन्म के वक्त जान गंवा देती हैं. बहुत सी माओं के पास खाने को पर्याप्त खाना नहीं है जो प्रेग्नेंसी के दौरान मुश्किलें बढ़ाता है और जन्म के बाद होता है बच्चे को पालने का संघर्ष. लोगों की मदद करने वाले एक अंतरराष्ट्रीय संगठन डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का कहना है कि महिलाओं और लड़कियों को शिक्षा और रोजगार से महरूम करके तालिबान ने स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच को रोका है. इसकी वजह औरतों के अकेले आने-जाने की आजादी पर लगाई गई पाबंदी है.

खासकर गांवों में हाल बहुत ज्यादा बुरा है जहां आमतौर पर अस्पताल 75 किलोमीटर दूर हैं और औरतें अपने पिता, पति या भाई को साथ लिए बिना बाहर नहीं जा सकतीं. इससे भी बुरा ये है कि बहुत से लोगों के पास तो इस लंबी दूरी के लिए किराया भी नहीं है, ऐसे में दो लोगों का खर्च उठाने का सवाल ही पैदा नहीं होता. साथ ही तालिबान ने ये भी आदेश दिया है कि औरतों को सिर्फ महिला डॉक्टर ही देखेंगी जबकि हाल ये है कि अफगानिस्तान के अस्पतालों में बहुत कम महिला डॉक्टर हैं. डॉक्टर भी उन पाबंदियों से आजाद नहीं हैं जो बाकी महिलाओं पर लागू होती हैं यानी अगर साथ जाने के लिए मर्द नहीं हैं तो वो घर से बाहर नहीं निकल सकतीं.

एमनेस्टी: तालिबान का महिलाओं के प्रति बर्ताव मानवता के खिलाफ अपराध

ड्रेस-कोड और खेलों से तौबा

कपड़े पहनने की आजादी भी ले ली गई है. 2022 में, अफगान टीवी पर प्रेजेंटर सोनिया नियाजी ने चेहरे पर नकाब पहनने के फैसले के खिलाफ आवाज उठाई हालांकि उन्हें प्रसारण करने के लिए ये आदेश मानना ही पड़ा. अफगानिस्तान में औरतों का बुर्का पहनना अनिवार्य है जो उनके पूरे शरीर को ढक कर रखे. अगर औरतों ऐसा नहीं करती हैं तो उनके परिवार के मर्दों को जेल में डाला सकता है.

पाबंदियों का एक और पहलू है औरतों की खेलों की दुनिया से विदाई. महिलाएं किसी ऐथलेटिक टीम में हिस्सा नहीं ले सकतीं. यही वजह है कि अफगानिस्तान की कुछ महिला ऐथलीटों ने देश से भागकर ऑस्ट्रेलिया में शरण ली है. तालिबान ने महिलाओं के पार्क जाने समेत, जिम, स्विमिंग पूल और स्पोर्ट्स क्लब जाने पर भी पूरी तरह रोक लगा रखी है यानी उनके लिए खेलों के बारे में सोचना भी अब नामुमकिन है.

Share Now

\