नयी दिल्ली, 16 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल जून में शिवसेना के दोफाड़ होने की वजह से महाराष्ट्र में उत्पन्न राजनीतिक संकट से जुड़े मामले के संदर्भ में 2016 में नबाम रेबिया फैसले को सात सदस्यीय पीठ को पुनर्विचार करने हेतु भेजने को लेकर फैसला सुरक्षित रख लिया है।
वर्ष 2016 के फैसले में सदस्यों को अयोग्य ठहराने के संदर्भ में विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियों की व्याख्या की गई है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की पांच सदस्यीय पीठ ने इस मामले में शिवसेना के उद्धव ठाकरे और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की ओर से उपस्थित वकीलों के तर्क सुने।
पीठ ने कहा, ‘‘पक्षकारों के वकीलों को सुना। बहस में नबाम रेबिया के मामले को वृहद पीठ को भेजने के संदर्भ में ही तर्क दिए गए। आदेश सुरक्षित किया जाता है।’’
उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना गुट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और ए एम सिंघवी ने नबाम रेबिया फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए मामले को सात सदस्यीय पीठ को भेजने का अनुरोध किया।
शिंदे गुट की ओर से पेश अधिवक्ता हरीश साल्वे और एन के कौल ने मामले को बड़ी पीठ को भेजने का विरोध किया। महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने भी मामले को बड़ी पीठ को भेजने का विरोध किया।
वर्ष 2016 में अरुणाचल प्रदेश के नेबाम रेबिया के मामले पर फैसला करते हुए पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला दिया था कि विधानसभा अध्यक्ष विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए दी गई अर्जी पर कार्यवाही नहीं कर सकता अगर उसे हटाने के लिए पहले से ही नोटिस विधानसभा में लंबित हो।
यह फैसला एकनाथ शिंदे जो अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं के नेतृत्व में बगावत करने वाले विधायकों को राहत दे सकता है । ठाकरे गुट ने बागी विधायकों को उस समय अयोग्य करार देने की मांग की थी जब शिंदे गुट का महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरी सीताराम जरीवाल को हटाने का प्रस्ताव सदन के समक्ष लंबित था। जरीवाल को ठाकरे का करीबी माना जाता है।
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